SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६ जैनधर्म की हजार शिक्षाएं अज्ञानी आत्मा क्या करेगा ? वह पुण्य और पाप को कैसे जान पायेगा? जोवाजीवे अयाणंतो, कहं सो नाही संवरं? -दशवकालिक ४१२ जो न जीव (चैतन्य) को जानता है, और न अजीव (जड़) को, वह संयम को कैसे जान पायेगा? जावंतऽविज्जा पुरिसा, सव्वे ते दुक्खसंभवा । लुप्पंति बहुसो मूढा, संसारम्मि अणंतए । -- उत्तराध्ययन ६१ जितने भी अज्ञानी-तत्त्व-बोध-हीन पुरुप है, वे सब दुःख के पात्र हैं । इस अनन्त संसार में वे मूढ प्राणी बार-बार विनाश को प्राप्त होते रहते हैं। १२. आसुरीयं दिसं बाला, गच्छंति अवमा तमं । -उत्तराध्ययन ७१० अज्ञानी जीव विवश हुये अन्धकाराच्छन्न आसुरीगति को प्राप्त होते हैं । १३. अण्णाणमओ जीवो कम्माणं कारगो होदि । -समयसार ६२ अज्ञानी आत्मा ही कर्मों का कर्ता होता है । जो अप्पणा दु मण्णदि, दुक्खिदसुहिदे करेहि सत्तेति । सो मूढो अण्णाणी गाणी एत्तो दु विवरीदो ॥ -समयसार २५३ जो ऐसा मानता है कि "मैं दूसरों को दुःखी या सुखी करता हूँ"वह वस्तुतः अज्ञानी है । ज्ञानी ऐसा कभी नहीं मानते ।
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy