________________
प्रज्ञान
अणाणाय पुट्ठा वि एगे नियति, मंदा मोहेण पाउडा।
—आचारांग १।२।२ मोहाच्छन्न अज्ञानी साधक संकट आनेपर धर्मशासन की अवज्ञा कर फिर संसार की ओर लौट पड़ते हैं ।
वितहं पप्पऽग्वेयन्ने, तम्मि ठाणम्मि चिट्ठइ।
-आचारांग ११२।३ अज्ञानी साधक जब कभी असत्य विचारों को सुन लेता है, तो वह उन्हीं में उलझकर रह जाता है । लोयंसि जाण अहियाय दुक्खं ।
-आचारांग १।३।१ यह समझ लीजिये कि संसार में अज्ञान तथा मोह ही अहित और
दुःख करनेवाला है। ४. अंधो अंधं पहणितो, दूरमद्धाणुगच्छइ ।
-सूत्रकृतांग २१।२।१६ अन्धा-अन्धे का पथप्रदर्शक बनता है, तो वह अभीष्ट मार्ग से दूर भटक जाता है।