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ज्ञान और ज्ञानी
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७.
णाणं णरस्स सारो।
-दर्शनपाहुर ३१ ज्ञान मानव-जीवन का सार है । विन्नोणेण समागम्म धम्ममाहणमिच्छिउं ।
- उत्तराध्ययन २३॥३१ विज्ञान के द्वारा धर्म के साधनों का उचित निर्णय करना चाहिए। सुयस्स आराहणयाए णं अन्नाणं खवेई ।
-उत्तराध्ययन २६५९ ज्ञान की आराधना करने से आत्मा अज्ञान का नाश करती है। ८. सव्व जगुज्जोयकरं नाणं, नाणेण नज्जए चरणं।
-व्यवहारमाध्य ७।२१६ ज्ञान विश्व के समस्त रहस्यों को प्रकाशित करनेवाला है। ज्ञान
से ही मनुष्य को कर्तव्य का बोध होता है । ६. नाणंमि असंतंमि चरित्तं वि न विज्जए ।
-व्यवहारभाष्य ७२१७ जहां ज्ञान नहीं, वहां चारित्र भी नहीं रहता ।