________________
६
१.
P.
४.
ज्ञान और ज्ञानी
उद्दे सो पासगस्स नत्थि ।
- आचारांग ११२/३
जो स्वयं द्रष्टा (ज्ञानी) है, उसे उपदेश की कोई आवश्यकता नहीं रहती ।
आयंकदंसी न करेइ पावं ।
- आचारांग १।३।२
जो संसार के दुःखों को जानता है, वह ज्ञानी कभी पाप नहीं
करता ।
पढमं नाणं तओ दया ।
- दशवेकालिक ४।१०
पहले ज्ञान होना चाहिए, फिर उसके अनुसार दया - अर्थात्
आचरण ।
जहा सूई समुत्ता पडियावि न विणस्सइ । एवं जीवे ससुत्ते संसारे न विणस्स ||
१५२
— उत्तराध्ययन २६।५६
जैसे धागे ( सूत्र ) में पिरोई हुई सूई गिर जाने पर भी गुम नहीं होती, उसी प्रकार ज्ञानरूप धागे से युक्त आत्मा संसार में भटकता नहीं ।