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श्रद्धा
सद्धा परमदुल्लहा।
-उत्तराध्ययन ३९ धर्म में श्रद्धा होना परम दुर्लभ है। ६. संसयं खलु सो कुणइ, जो मग्गे कुणइ घरं ।
-उत्तराध्ययन ६।२६ साधना में संशय वही करता है, जो कि मार्ग में ही घर करना (रुक जाना) चाहता है। मद्धा खमं णे विणइअत्तु रागं ।
-- उत्तराध्ययन १४१२८ धर्म-श्रद्धा हमे राग ! आसक्ति) से मुक्त कर सकती है। ८. जं सक्कइ तं कीरड, जं न सक्कड तयम्मि सद्दहणा। सदहमाणो जीवो, वच्चइ अयरामरं ठाणं ॥
धर्मसंग्रह २०२१ जिसका आचरण हो सके, उसका आचरण करना चाहिए एवं जिसका आचरण न हो सके, उम पर श्रद्धा रखनी चाहिये । धर्म पर श्रद्धा रखता हुआ जीव भी जरा एवं मरणरहित मुक्ति का अधिकारी होता है।