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श्रद्धा
जाए सद्धाए निक्खते तमेव अणुपालेज्जा, विजहिता विसोत्तियं।
-आचारांग ॥१॥३ जिस श्रद्धा के माथ निष्क्रमण किया है, साधना पथ अपनाया है, उसी श्रद्धा के माथ विस्रोतसिका (मन की शंका या कुण्ठा) से दूर रहकर उमका अनुपालन करना चाहिए।
वितिगिच्छासमावन्नेणं अप्पाणणं, नो लहड समाहि।
-आचारांग ११५५ शंकाशील व्यक्ति को कभी समाधि नहीं मिलती। ३. कह कह वा वितिगिच्छतिण्णे ।
-मूत्रकृतांग १।१४१६ मुमुक्ष को कैसे न कैसे मन की विचिकित्मा मे पार हो जाना चाहिए । अर्थान शंकाशील नहीं रहना चाहिए । अदक्व, व दक्खुवाहियं मद्दहसु ।
-सूत्रकृतांग २।३।११ नहीं देखनेवालो ! तुम देविनेवालों की बात पर विश्वास करके चलो।
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