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मोक्षमार्ग
नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा । एस मग्गे त्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहि ।।
-उत्तराध्ययन २८२ वस्तु स्वरूप को यथार्थ से जाननेवाले जिन भगवान ने ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप को मोक्ष का मार्ग बतलाया है। आहंसु विज्जाचरणं पमोवखं ।
-सूत्रकृतांग १।१२।११ ज्ञान और कर्म (विद्या एवं चरण) से ही मोक्ष प्राप्त होता है। ३. नाणफलाभावाओ, मिच्छादिट्ठिस्म अण्णाणं ।
-विशेषावश्यकभाष्य ५२१ ज्ञान के फल (सदाचार) का अभाव होने से मिथ्यादृष्टि का ज्ञान अज्ञान है।
नाणेण जाणई भावे, सणेण य सरहे। चरित्तेण निगिण्हाई, तवेण परिसुज्झई ।।
- उत्तराध्ययन २८३५ ज्ञान से भावों (पदार्थों) का सम्यक् बोध होता है, दर्शन से श्रद्धा होती है। चारित्र से कर्मों का निरोध होता है और तप से आत्मा निर्मल होती है।
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