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मोक्ष-मार्ग
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नाणस्स सव्वस्स पगासणाए
अन्नाणमोहस्स विवज्जणाए । रागस्स दोसस्स य संखएणं, एगंतसोक्खं समुवेइ मोक्खं ॥
-उत्तराध्ययन ३२।२ ज्ञान के समग्र प्रकाश से, अज्ञान और मोह के विवर्जन से, राग एवं उप के क्षय से, आत्मा एकान्त सुख-स्वरूप मोक्ष को प्राप्त करता है।
णाणं पयासगं, मोहओ तवो, संजमो य गुत्तिकरो। तिण्हं पि समाजोगे, मोक्खो जिणसासणे भणिओ ॥
-आवश्यकनियुक्ति १०३ ज्ञान प्रकाश करनेवाला है, तप विशुद्धि एवं संयम पापों का निरोध करता है । तीनों के समयोग से ही मोक्ष होता है—यही जिनशामन का कथन है। मोक्षोपायो योगो ज्ञान-श्रद्धान-चरणात्मकः ।
-अभिधानचिन्तामणि ११७७ योग, ज्ञान-दर्शन-चारित्रमय है एवं मोक्ष का उपाय है।
सव्वारंभ-परिग्गह णिक्वेवो सव्वभूतसमया य । एक्कग्गमणसमाहाणया य, अह एत्तिओ मोक्खो ।।
--बृहत्कल्पभाष्य ४५८५ सब प्रकार के आरम्भ और परिग्रह का त्याग, सब प्राणियों के प्रति समता और चित्त की एकाग्रतारूप समाधि-बस इतना मात्र मोक्ष है। नाण-किरियाहिं मोक्खो।।
___--- विशेषावश्यकभाष्य ३ ज्ञान एवं क्रिया (आचार) से ही मुक्ति होती है ।
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