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२५.
जैनधर्म की हजार शिक्षाएं अन्तर-बाहिरजप्पे, जो वट्इ सो हवेइ बहिरप्पा । जप्पेसु जो ण वट्टइ, सो उच्चइ अन्तरंगप्पा ।
-नियमसार १५० जो अन्दर एव बाहिर के जल्प (वचनविकल्प) में रहता है, वह बहिरात्मा है । और जो किसी भी जल्प में नही रहता, वह अन्त
रात्मा कहलाता है। २६. अप्पाणं विणु णाणं, णाण विणु अप्पगो न संदेहो।
-नियमसार १७१ यह निश्चित सिद्धान्त है कि आत्मा के बिना ज्ञान नही, और ज्ञान
के बिना आत्मा नही। २७. अप्पो वि य परमप्पो, कम्मविम्मुक्को य होइ फुडं ।
-भावपाहुड १५१ आत्मा जब कर्म-मल मे मुक्त हो जाता है, तो वह परमात्मा बन
जाता है। २८. तिपयागे सो अप्पा पर-मन्तरबाहिरो दु हेऊणं ।
-मोक्षपाहुड ४ आत्मा के तीन प्रकार है-परमात्मा, अन्तरात्मा और वहिरात्मा। (इनमे बहिगन्मा से अन्तरात्मा, और अन्तगत्मा से परमात्मा की
ओर बढना चाहिए।) २.
चित्तं तिकालविसयं ।
-दशवै० नि० भाष्य० १९ आत्मा की चेतनाशक्ति त्रिकालज्ञ है। ममस्त भावो को जानने
की क्षमता आत्मा म है। ३०. णिच्चो अविणासि सासओ जावो ।
-दशव०नि० भाष्य ४२ आत्मा नित्य है, अविनाशी है, एवं शाश्वत है।