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आत्म-स्वरूप
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जीवो परिणमदि जदा, ___ सुहेण असुहेण वा सुहो असुहो । सद्ध ण तदा सुद्धो, हवदि हि परिणामसब्भावो ।
-प्रवचनसार १९ आत्मा परिणमन स्वभाववाला है, इसलिए जब शुभ या अशुभ भाव मे परिणत होता है, तब वह शुभ या अशुभ हो जाता है।
और जव शुद्ध भाव मे परिणत होता है, तब वह शुद्ध होता है। २१. जारिसिया सिद्धप्पा, भवमल्लिय जीव तारिसा होति ।
-नियमसार ४७ जैसी शुद्ध आत्मा सिद्धो (मुक्त आत्माओ) की है, मूल स्वरूप से
वैसी ही शुद्ध आत्मा ससारस्थ प्राणियो की है। २२. केवलमत्तिसहावो, सोहं इदि चिंतए णाणी।
-नियमसार ६६ "मैं केवल शक्ति स्वरूप हूं"- ज्ञानी ऐसा चिन्तन करे ।
एगो मे मासदो अप्पा, णाण दंमणलक्खणो। सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोगलक्षणा।
-नियमसार ६६ ज्ञान-दर्शन स्वरूप मेरा आत्मा ही शाश्वत तत्त्व है, इमसे भिन्न जितने भी (गग-द्वे प, कर्म, गैर आदि) भाव है, वे सब सयोग
जन्य बाह्यभाव है, अत. वे मेर नही है । २४. जो झायइ अप्पाणं, परमममाही हवे तस्स ।
-नियमसार १०२ जो अपनी आत्मा का ध्यान करता है, उसे परम समाधि की प्राप्ति होती है।