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आत्म-स्वरूप
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आत्मा स्वयं अपने द्वारा ही कर्मों की उदीरणा करता है, स्वयं अपने द्वारा ही उनकी गर्हा - आलोचना करता है, और अपने द्वारा ही कर्मों का संवर आश्रव का निरोध करता है ।
१४.
हस्सिय कुंथुस्स य ममे चेव जीवे ।
आत्मा की दृष्टि से हाथी और कुंथुआ- दोनों में आत्मा एक
समान है ।
नत्थि जीवस्म नामो त्ति ।
आत्मा का कभी नाश नहीं होता ।
- भगवती ७/८
-उत्तराध्ययन २।२७
नो इन्दियग्गेज्झ अमुत्तभावा, अमुत्तभावाविय होइ निच्चं ।
- उत्तराध्ययन १४।१६
आत्मा आदि अमूर्ततत्व इन्द्रियग्राह्य नहीं होते । और जो अमूर्त होते हैं वे अविनाशि - नित्य भी होते हैं ।
अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली । अप्पा कामदुहा घेणू, अप्पा मे नन्दणं वणं ।।
- उत्तराध्ययन २०१३६ मेरी (पाप में प्रवृत्त) आत्मा ही वैतरणी नदी और कुटशाल्मली वृक्ष के समान ( कष्टदायी ) है । और मेरी आत्मा ही ( सत्कर्म में प्रवृत्त) कामधेनु और नन्दनवन के समान सुखदायी भी है ।
अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्ठय सुप्पट्ठिओ ॥
उत्तराध्ययन २०१३७