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जैनधर्म की हजार शिक्षाएं ५. जे आया से विन्नाया, जे विनाया से आया। जे ण वियाणइ से आया । तं पडुच्च पडिसंखाए।
-आचारांग ११२५ जो आत्मा है, वह विज्ञाता है। जो विज्ञाता है, वह आत्मा है। जिससे जाना जाता है, वह आत्मा है। जानने की इस शक्ति से ही आत्मा की प्रतीति होतो है।
मवे मग नियति, तक्का जत्थ न विज्जड । मई तत्थ न गाहिया।
-आचारांग २०६ आत्मा के वर्णन में मन के मव शब्द निवृत्त हो जाते है-समाप्त हो जाते है। वहां तर्क की गति भी नही है। और न बुद्धि ही उमे ठीक तरह ग्रहण कर पाती है। अन्नो जीवो, अन्नं सरीरं ।
सूत्रकृतांग २०१९ आत्मा और है, शरीर और है। अन्ने खलु कामभोगा, अन्नो अहमंमि ।
-सूत्रकृतांग २।१।१३ शब्द, रूप आदि काम-भोग (जडपदार्थ) और हैं, मैं (आत्मा) और हूं।
अप्पणा चेव उदीरेड, अप्पणा चेव गगहड, अप्पणा चेव संवरह।
-भगवती १३