________________
१२४
१२. अणुसोओ संसारो पडिसोओ तस्स उत्तारो ।
१३.
१५.
जैनधर्म की हजार शिक्षाएँ
अनूस्रोत- अर्थात् विषयासक्त अर्थात् विपयों से विरक्त रहना, है ।
१६.
— दशवेकालिकचूलिका २३ रहना, संसार है । प्रतिस्रोतसंसार सागर से पार होना
असंखयं जीविय मा पमायए !
जीवन का धागा टूट जाने पर पुनः जुड़ नहीं सकता, वह असंस्कृत है इसलिए प्रमाद मत करो ।
१४.
— उत्तराध्ययन ४। १
दुमपत्तए पंडुयए जहा निवडइ राइगणाण अच्चए । एवं मणुयाण जीविय समयं गोयम ! मा पमायए ।।
- उत्तराध्ययन १०।१
जिस प्रकार वृक्ष के पत्त े समय आने पर पीले पड़ जाते हैं, एवं भूमि पर झड़ पड़ते हैं । उसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी आयु के समाप्त होने पर क्षीण हो जाता है । अतएव हे गौतम! क्षण भर के लिए भी प्रमाद न कर ।
परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पंडुऱ्या हवन्ति ते । से सव्वबले यहायई, समयं गोयम ! मा पमायए ॥ - उत्तराध्ययन १०।२६
तेरा शरीर जीर्ण होता जा रहा है, केश पक कर सफेद हो चले हैं। शरीर का सब बल क्षीण होता जा रहा है । अतएव हे गौतम ! क्षण भर के लिए भी प्रमाद न कर ।
तिणोहु सि अण्णवं महं, किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ ? अभितुर पारं गमित्तए, समयं गोयम ! मा पमायए ।।
- उत्तराध्ययन १०।२४