________________
३४
उद्बोधन
३
वओ अच्चेति जोव्वणं च ।
-आचारांग ११२।१ आयु और यौवन प्रतिक्षण बीता जा रहा है। २. अणभिक्कंतं च वयं मंपेहाए, खणं जाणाहि पंडिए ।
-आचारांग १।२।१ हे आत्मविद् साधक ! जो बीत गया सो बीत गया। शेष रहे जीवन को ही लक्ष्य में रखते हुए प्राप्त अवसर को परख ! समय का मूल्य समझ ! बुज्झिज्जत्ति तिउट्टिज्जा, बंधणं परिजाणिया ।
-सूत्रकृतांग १११११११ सर्वप्रथम बधन को समझो, और समझ कर फिर उसे तोडो ! ४. मंबुज्झह, किं न बुज्झह ?
संबोही खलु पेच्च दुल्लहा। णो एवणमंति राइओ. नो सुलभं पुणरावि जीवियं ॥
-सूत्रकृतांग १।२।११ अभी इसी जीवन में समझो, क्यों नहीं समझ रहे हो ? मरने के बाद परलोक में सम्बोधि का मिलना कठिन है।
१२२