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सरलता
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जो प्रमाद वश हुए कपटाचरण के प्रति पश्चात्ताप (आलोचना)
करके सरल हृदय हो जाता है, वह धर्म का आराधक है। ५. आहच्च चंडालियं कट्ट न निण्हविज्ज कयाइवि ।
-उत्तराध्ययन १३११ यदि साधक कभी कोई चाण्डालिक-दुष्कर्म करले, तो फिर उसे
छिपाने की चेप्टा न करे। ६. कड कडे ति भासज्जा, अकडं नो कडे ति य ।
-उत्तराध्ययन १।११ बिना किसी छिपाव या दुराव के किए हुए कर्म को किया हुआ
कहिए तथा नहीं किए हुए कर्म को न किया हुआ कहिए । ७. सोही उज्जुअभूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई ।
-उत्तराध्ययन ३।१२ ऋजु अर्थात् सरल आत्मा की विशुद्धि होती है, और विशुद्ध आत्मा में ही धर्म ठहरता है।