________________
११८
जैनधर्म की हजार शिक्षाएँ
२६.
२५. इमाइं छ अवयणाइ वदिना
अलियवयणे, हीलियवयणे खिसितवयणे, फरुमवयणे, गारत्थियवयणे, विउमवितं वा पुणो उदीरित्तए ।
-स्थानांग ६।३ छः तरह के वचन नही वोलना चाहिएअसत्यवचन, तिरस्कारयुक्त वचन, झिडकते हुए वचन, कठोर वचन, साधारण मनुष्णे की तरह अविचारपूर्ण वचन और शान्त हुए कलह को फिर मे भडकाने वाले वचन । मोहरिए मच्चवयणस्न पलिमंथू ।
-स्थानांग ६॥३ वाचालता मत्य वचन का विघात करती है। २७. जमढं तु न जाणेज्जा, एवमेयंतिं नो वए ।
--दशवकालिक ७८ जिम बात को म्वर न जानता हो, उसके सम्बन्ध मे 'यह ऐसा
ही है' इस प्रकार निश्चित भापा न बोले । २८. जत्थ सका भवे त तु, एवमेयति नो वए।
__-दशवकालिक ७६ जिम विषय में अपने को कुछ गका जैमा लगता हो, उसके सबंन्ध
मे 'यह ऐमा ही है'-इम प्रकार निश्चित भाषा न बोले । २६. न लवे अमाहुं माहु त्ति, माहुं माहु त्ति आलवे ।
-दशवकालिक ७४८ किसी प्रकार के दवाव या खुशामद मे असाधु ‘अयोग्य) को साधु
(योग्य) नही कहना चाहिए । माधु को ही साधु कहना चाहिए । ३०. न हासमाणो वि गिरं वएज्जा।
-दशवकालिक ७१५४ हंसते हुए नही बोलना चाहिए।