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वाणी-विवेक
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१७.
अणुवीइभासी से निग्गंथे ।
-आचारांग २।३।१५।२ जो विचारपूर्वक बोलता है, वही सच्चा निम्रन्थ है। १८ अणुणवीटभासी से निग्गये समावइज्जा मोसं वयणाए ।
-आचारांग २।३।१।२ जो विचारपूर्वक नही बोलता है उसका वचन कभी न कभी असत्य
से दूषित हो सकता है। १६. अचिंतिय वियागरे ।
-सूत्रकृतांग १।२५ जो कुछ बोले-पहले विचार कर बोले । जं छन्नं तं न वत्तव्यं ।
-सूत्रकृतांग १९२६ किमी की कोई गोपनीय जैसी बात हो, तो नही कहना चाहिए । २१. तुम तृमंति अमणुन्न, सव्वसो तं न वनए ।
-सूत्रकृतांग १२७ 'तू-तू - जैसे अभद्र शब्द कभी नहीं बोलना चाहिए। २२. विभज्जवाय त्र वियागरेज्जा।
-सूत्रकृतांग १११४१२२ विचारशील पुरुप सदा विभज्यवाद अर्थात् म्याद्वाद से युक्त वचन
का प्रयोग करें। २३. निरुद्धग वावि न दोहईज्जा ।
--सूत्रकृतांग १११४१२३ थोडे से मे कही जानेवाली वात को व्यर्थ ही लम्बी न करे। नाइवेल वएज्जा।
-सूत्रकृतांग १।१४।२५ साधक आवश्यकता से अधिक न बोले ।