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वाणी-विवेक
न य वुग्गहियं कहं कहिज्जा।
-दशवकालिक १०।१० विग्रह बढ़ानेवाली बात नहीं कहनी चाहिए । बहुयं मा य आलवे।
-उत्तराध्ययन १११० बहुत नहीं बोलना चाहिए। ७. नापुट्ठो वागरे किंचि, पुट्ठो वा नालियं वए ।
-उत्तराध्ययन १११४ बिना बुलाए बीच में कुछ नहीं बोलना चाहिए, बोलने पर भी असत्य जैसा कुछ न कहं । वयगुत्तयाए णं णिव्विकारत्तं जणयई ।
--उत्तराध्ययन २६।५१ वचन-गुप्ति से निर्विकार स्थिति प्राप्त होती है ।
गिरा हि मंखाग्जुया वि संसती, अपेसला होइ असाहुवादणी ।
-वृहत्कल्पभाष्य ४११८ संस्कृत-प्राकृत आदि के रूप में सुसंस्कृत भापा भी यदि असभ्यता
पूर्वक बोली जाती है तो वह भी जुगुसित हो जाती है । १०. पुदिव बुद्धीए पासेत्ता, तत्तो वक्कमुदाहरे । अचवखुओ व नेया, बुद्धिमन्न सए गिरा ।।
- व्यवहारभाष्य पीठिका ७६ । पहले बुद्धि से परखकर फिर बोलना चाहिए । अन्धा व्यक्ति जिस प्रकार पथ-प्रदर्शक की अपेक्षा रखता है उसीप्रकार वाणी बुद्धि की अपेक्षा रखती है। कुसलवइ उदीरंतो, जं वइगुत्तो वि समिओ वि।
-यहत्कल्पभाष्य ४४५१