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वाणी-विवेक
वइज्ज बुद्ध हियमाणुलोमियं ।
-दशवकालिक ७५६ बुद्धिमान ऐसी भाषा बोले-जो हितकारी हो एवं अनुलोम-सभी को प्रिय हो।
दिटु मियं असंदिद्ध, पडिपुन्न' विजयं । अयंपिरमणुन्विग्गं, भासं निसिरअत्तवं ।।
-दशवकालिक VI४६ आत्मवान साधक दृष्ट (अनुभूत), परिमित, सन्देहरहित, परिपूर्ण (अधूरी कटी-छंटी बात नहीं) और स्पष्ट वाणी का प्रयोग करे । किन्तु यह ध्यान में रहे कि वह वाणी भी वाचलता से रहित
तथा दूसरों को उद्विग्न करनेवाली न हो। ३. नो तुच्छए नो य विकत्थइज्जा ।
-सूत्रकृतांग १११४०२१ बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वह वाणी से न किसी को तुच्छ बताए और न झूठी प्रशंसा करे ।
वाया दुरुत्ताणि दुरुद्धराणि, वेराणुबंधीणि महब्भयाणि ।
-- दशवकालिक ३७ वाणी से बोले हुए दुष्ट और कठोर वचन, जन्म, जन्मान्तर के वर और भय के कारण बन जाते हैं।
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