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सद्व्यवहार १६. अलं विवाएण णेकत मुहेहिं ।
-निशीषभाष्य २६१३ कृतमुख (विद्वान) के साथ विवाद नहीं करना चाहिए। २०. अहऽसेयकरी अन्नेसि इखिणी।
-सूत्रकृतांग १२।२।१ दूसरों की निन्दा हितकर नहीं है। २१. नो अत्ताणं आसाएज्जा, नो परं आसाएज्जा।
-आचारांग १६५ न अपनी अवहेलना करो न दूसरों की। २२. न बाहिरं परिभवे, अत्ताणं न समुक्कसे ।
-दशवकालिक ८।३० बुद्धिमान दूसरों का तिरस्कार न करे और अपनी बड़ाई न करे। २३. न यावि पन्ने परिहास कुज्जा।
-सूत्रकृतांग १।१४।१६ बुद्धिमान किसी का उपहास नही करता २४. णाति वेलं हसे मुणी।
-सूत्रकृतांग १।६।२६ मर्यादा से अधिक नहीं हंसना चाहिए।