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सद्व्यवहार
१. सव्वपाणा न हीलियन्वा न निंदियन्वा ।
-प्रश्नव्याकरण २१ विश्व के किसी भी प्राणी की न अवहेलना करनी चाहिए
और न निन्दा । २. जो परिभवइ परं जणं, संसारे परिवत्तई महं।
-सूत्रकृतांग १।२।२।१ जो दूसरों का परिभव अर्थात् तिरस्कार करता है, वह संसारवन में
दीर्घकाल तक भटकता रहता है। ३, देवाकारोपेतः पाषाणोऽपि नावमन्येत तत्किं पुनर्मनुष्यः ।
-नीतिवाक्यामृत ७.३० देवकी आकृतिवाले पत्थर का भी अपमान नहीं करना चाहिए, फिर मनुष्य की तो बात ही क्या ? दवदवस्स न गच्छेज्जा।
-दशवकालिक ५५१३१४ मार्ग में जल्दी जल्दी-ताबड़-तोबड़ नहीं चलना चाहिए। ५. हसंतो नाभिगच्छेज्जा।
-दशवकालिक ५।१।१४ मार्ग में हँसते हुए नहीं चलना चाहिए ।