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मनोबल
६. देहबलं खलु विरियं, बलसरिसो चेव होति परिणामो ।
-हत्कल्पमाष्य ३९४८ देह का बल ही वीर्य है और बल के अनुसार ही आत्मा में शुभा
शुभ भावों का तीव्र या मंद परिणमन होता है । ७. वसुंधरेयं जह वीरभोज्जा।
-वृहत्कल्पभाष्य ३२५४ यह वसुन्धरा वीरभोग्या है। 5 परेषां दूषणाज्जातु न बिभेति कवीश्वरः । किमलूकभयाद् धुन्वन् ध्वान्तं नोदेति भानुमान् ।
-आदिपुराण ११७५ दूसरों के भय से कविजन (विद्वान्) कभी डरते नहीं है। क्या उल्लुओ के भय से सूर्य अंधकार का नाश करना छोड़ देता है ?