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________________ २१ १. २. ३. ४. ५. स्वाध्याय सज्झाए वा निउत्तेण सव्वदुक्ख विमोक्खणे । - उत्तराध्ययन २६।१० स्वाध्याय करते रहने मे समस्त दुःखों से मुक्ति मिल जाती है । सभायं च तवो कुज्जा सव्वभावविभावणं । -- उत्तराध्ययन २६ । ३७ स्वाध्याय सब भावो ( विषयों) का प्रकाश करनेवाला है । सझाएणं णाणावरणिज्जं कम्मं खवेई । उत्तराध्ययन २६।१८ स्वाध्याय से ज्ञानावरण ( ज्ञान को आच्छादन करनेवाले) कर्म का क्षय होता है । न वि अत्थि न वि अ होही, सज्झाय सम तवोकम्मं । - बृहत्कल्पभाष्य ११६६ स्वाध्याय के समान दूसरा तप न कभी अतीत में हुआ है, न वर्तमान में कही है और न भविष्य में कभी होगा । सुष्ठु आ-मर्यादया अधीयते इति स्वाध्यायः । - स्थानांग टीका ५।३।४६५ सत्शास्त्र को मर्यादापूर्वक पढ़ना स्वाध्याय है । ७५
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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