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स्वाध्याय
सज्झाए वा निउत्तेण सव्वदुक्ख विमोक्खणे ।
- उत्तराध्ययन २६।१०
स्वाध्याय करते रहने मे समस्त दुःखों से मुक्ति मिल जाती है ।
सभायं च तवो कुज्जा सव्वभावविभावणं ।
-- उत्तराध्ययन २६ । ३७
स्वाध्याय सब भावो ( विषयों) का प्रकाश करनेवाला है ।
सझाएणं णाणावरणिज्जं कम्मं खवेई ।
उत्तराध्ययन २६।१८
स्वाध्याय से ज्ञानावरण ( ज्ञान को आच्छादन करनेवाले) कर्म का क्षय होता है ।
न वि अत्थि न वि अ होही, सज्झाय सम तवोकम्मं । - बृहत्कल्पभाष्य ११६६ स्वाध्याय के समान दूसरा तप न कभी अतीत में हुआ है, न वर्तमान में कही है और न भविष्य में कभी होगा ।
सुष्ठु आ-मर्यादया अधीयते इति स्वाध्यायः ।
- स्थानांग टीका ५।३।४६५
सत्शास्त्र को मर्यादापूर्वक पढ़ना स्वाध्याय है ।
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