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संतोष
संतोसिणो नो पकरेंति पावं ।।
-सूत्रकृतांग ॥१२॥१५ संतोषी साधक कभी कोई पाप नहीं करते । संतोसपाहन्नरए स पुज्जो।
-दशवकालिक ९३५ जो संतोष के पथ में रमता है, वही पूज्य है। ३. सद्दे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तोन उवेइ तुर्दिछ।
--उत्तराध्ययन ३२१४२ शब्द आदि विषयों में अतृप्त और परिग्रह में आसक्त रहनेवाला
आत्मा कभी संतोष को प्राप्त नहीं होता। ४. असंतुट्ठाणं इह परत्थ य भयं भवति ।
आचारांगचूणि १।२।२ असंतुष्ट व्यक्ति को यहां, वहाँ सर्वत्र भय रहता है। ५. असन्तोषवतः सौख्यं न शक्रस्य न चक्रिणः ।
-योगशास्त्र २।११६ असंतोषी इन्द्र को व चक्रवर्ती को भी सुख नहीं मिलता।
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