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५४ महामेधावी आचार्य मेरुतुग
प्रबन्ध चिन्तामणि के रचनाकार आचार्य मेरुतुग नागेन्द्र गच्छ के आचार्य थे। वे परमप्रभावी आचार्य चन्द्रप्रभ के शिष्य थे। मेघदूत काव्य के टीकाकार आचार्य मेरुतुग उनसे भिन्न थे। टीकाकार मेरुतुग का जन्म वी० नि० १८७३ (वि० १४०३) मे एव स्वर्गवास वी० नि० १९४१ (वि० १४७१) मे हुआ था। प्रस्तुत आचार्य मेरुतुग इनसे पूर्व थे। वे वी०नि० १८३२ (वि० स० १३६२) में विद्यमान थे।
आचार्य मेरुतुग का वैदुष्य इतिहास लेखन मे प्रकट हुआ है । उन्होने महापुरुप चरित्न नामक ग्रन्थ का निर्माण किया था । प्रवन्ध चिन्तामणि की तरह यह कृति भी इतिहास से सबधित है। इस कृति मे जैन शासन के प्रथम तीर्थंकर ऋषभ, सोलहवे तीर्थकर शान्ति, वाइसवे नेमिनाथ, तेइसवे पार्श्वनाथ एव अतिम तीर्थंकर महावीर का सक्षिप्त जीवन-परिचय है। इतिहास-रसिक पाठको के लिए यह अत्यन्त उपयोगी ग्रन्थ है। ____ आचार्य मेरुतुग का प्रबन्ध-चिन्तामणि ग्रन्थ जैन इतिहास की विपुल सामग्री से परिपूर्ण है। जैन इतिहास की सामग्री को विस्तृत रूप से प्रस्तुत करने वाले मुख्य चार अन्य माने गए है—१ प्रभावक चरित्र, २ प्रवन्ध चिन्तामणि, ३ प्रबन्ध कोश, ४ विविध तीर्थ कल्प। ये ग्रन्थ परस्पर एक-दूसरे के पूरक हैं। कालक्रम की दृष्टि से इनमे प्रभावक चरित्र सर्वप्रथम एव प्रबन्ध चिन्तामणि का स्थान द्वितीय है।
प्रवन्ध चिन्तामणि का विवेचन सक्षिप्त एव सामासिक शैली मे है । इस ग्रन्थ के निर्माण में विद्वान धर्मदेव का सराहनीय सहयोग आचार्य मेरुतुग को प्राप्त था। विद्वान् धर्मदेव वृद्ध गुरु भ्राता या अन्य स्थविर पुरुप थे।
आचार्य मेरुतुग के गुणचन्द्र नाम का शिष्य था। वह लेखन कला मे प्रवीण था । उमने इस ग्रन्थ की पहली प्रतिलिपि तैयार की थी। राजशेखर के प्रबन्ध कोश मे प्रवन्ध चिन्तामणि का उपयोग हुआ है।
प्रस्तुत ग्रन्थ का निर्माण काठियावाड मे हआ था। ग्रन्थ-रचना की सम्पन्नता का समय वी० नि० १८३० (वि० १३६०) है। इस आधार पर महामेधावा आचार्य मेरुतुग वी० नि० की उन्नीसवी सदी के विद्वान् थे।