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३४६ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
समझाया गया है। योग विधि मे आचाराङ्ग, सूत्रकृताङ्ग, समवायाङ्ग आदि आगम विषयो का वर्णन भी है।
आचार्य जिनप्रभ ने वी०नि० १८५० (वि० १३८५) मे मुगल सम्राट 'मुहम्मद तुगलक' को प्रतिबोध देने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। इसमे जैनशासन की अतिशय प्रभावना हुई और मुगल सम्राटो को प्रतिवोध देने की शृखला में आचार्य जिनप्रभ प्रथम थे। ____ आचार्य जिनप्रभ सूरि के गुरु जिनसिंह सूरि थे। उनसे लघु खरतरगच्छ शाखा का विकास हुआ था।
आचार्य जिनप्रभ वी० नि० १९वी शताब्दी (वि० १४वी) के प्रभावक विद्वान थे।