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५१ मति-मार्तण्ड आचार्य मल्लिषेण
मेधावी आचार्य मल्लिषेण नागेन्द्र गच्छीय उदयप्रभ सूरि के शिष्य थे। वे व्याकरण, न्याय, साहित्य आदि विभिन्न विपयो के अधिकारी विद्वान थे। नैयायिक, वैशेषिक, साख्य, मीमासक, बौद्ध प्रभृति अनेक दशनो के अध्ययन-मनन से उनकी चिन्तन शक्ति प्रौढता प्राप्त कर चुकी थी। वर्तमान मे स्याद्वाद मजरी के अतिरिक्त उनकी कोई भी रचना उपलब्ध नहीं है। ___ स्याद्वाद मजरी भी हेमचन्द्र की अन्ययोगव्यवच्छेदिका की टीका मात्र है। प्रसाद और माधुर्य गुण से मडित यह टीका रत्नप्रभ सूरि की स्याद्वाद रत्नावतारिका से अधिक सरल और सरस है। इसकी कमनीय पदावलिया झरोखे से झाकती हुई शीतकालीन तरुण किरणो की तरह आनन्द प्रदान करती हैं। विविध दर्शनो का मर्मस्पर्शी विवेचन और युक्तिपुरस्सर स्याद्वाद का प्रतिष्ठापन मल्लिषेण की सन्तुलित मेधा का परिचायक है। दर्शनान्तरीय मत के प्रकाशन मे भी उनके प्रति प्रामाणिक, प्रकाण्ड ऋपि आदि बहुत शालीन शब्दो का प्रयोग किया गया है।
विपुल साहित्य न होते हुए भी मल्लिषेण की प्रसिद्धि अपनी इस एकमात्र रचना स्याद्वाद मञ्जरी के आधार पर है।
इस कृति ने जैन-जनेतर सभी विद्वानो को प्रभावित किया। माधवाचार्य ने सर्वदर्शनसग्रह मे इसका सकेत किया और यशोविजय जी ने इस पर स्याद्वाद मञ्जूषा को लिखा है। ___ आचार्य मल्लिषेणके जीवन विषय की यत् किंचित् प्रामाणिक सामग्री स्याद्वाद मञ्जरी के प्रशस्ति श्लोको मे प्राप्त है । वे श्लोक इस प्रकार है
नागेन्द्रगच्छगोविन्दवक्षोलकारकौस्तुभा । ते विश्ववन्द्या नन्द्यासुरुदयप्रभसूरय ॥ श्रीमल्लिषेणसूरिभिरकारि तत्पदगगनदिनमणिभि । वृत्तिरिय मनुरविमितशाकान्दे दीपमहसि गनी ।। श्रीजिनप्रभसूरीणा साहाय्योभिन्नसोरभा । श्रुतावुत्तसतु मता वृति स्याद्वादमजरी ॥