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५० शब्द-शिल्पी आचार्य सोमप्रभ
आचार्य सोमप्रभ सूरि तपागच्छ परम्परा के प्रभावक आचार्य थे। उनका जन्म वी०नि० १७८० (वि० स० १३१०) मे हुआ। ग्यारह वर्ष की आल्पावस्था मे उन्होने दीक्षा ग्रहण की और बाईस वर्ष की लघुवय मे सूरिपद पर आरूढ हुए। उनकी बहुश्रुतता और शास्त्रार्थ-निपुणता प्रसिद्ध थी । चित्तौड में ब्राह्मण पडितो के सामने विजय प्राप्त कर अपने बुद्धि-कौशल का परिचय दिया। जैनागमो का गभीर ज्ञान भी उनके पास था।
अट्ठाईस चित्रवध-स्तवनो की उन्होने रचना की। उनकी सबसे मधुर कृति 'सूक्ति मुक्तावली' है जो आज 'सिन्दूर प्रकर' के नाम से अधिक प्रसिद्ध है । यह सस्कृत कृति है । इसमे विविध विषयो से सम्बन्धित सौ श्लोक हैं । प्रति श्लोक की प्रति पक्ति का शब्द-सौष्ठव, सौम्य भाषा तथा सानुप्रासिक धातु प्रत्ययो का लालित्य सूरि जी के महान शब्दशिल्पी-कर्म को अभिव्यक्त करता है। ____ इस कृति मे समागत उल्लेखानुसार कुछ इतिहासकार विजयसिंह सूरि के शिष्य सोमप्रभ सूरि को 'सूक्ति मुक्तावली' के रचनाकार मानते है । प्रस्तुत सोमप्रभ सूरि धर्मघोष सूरि के शिष्य और पद्यानन्द सूरि आदि विद्वान् मुनियो के गुरु थे। ____उनका मतिज्ञान अतीव निर्मल था। उन्हें कभी-कभी भविष्य का आभास भी होता था। भीम पल्ली में घटित अनिष्ट भविष्य की घोपणा उन्होने पहले ही कर दी थी। सूरि जी की यह ज्ञानशक्ति प्राचीन ऋषियो के प्रातिभ ज्ञान का स्मरण कराती और भक्तगण को आश्चर्याभिभूत कर देती।
उनका स्वर्गवास वी० नि० १८४३ (वि० स० १३७३) मे हुआ।