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कवि-किरीट आचार्य रामचन्द्र ३३१
-गिरि मालाओ एव दुर्लध्य दुर्गों पर विजय पताका फहराने वाले देव । आपकी दिग्विजय यात्रा के महोत्सव-प्रसग पर वेगवान अश्वो की दौड के कारण उनके खुरो से उठे पृथ्वी के धूलिकण पावन लहरियो पर माढ होकर आकाशगगा में जा मिले । नीर और रजो के सम्मिश्रण से वहा दूब उग आयो । उस दूब को चरते-चरते चलने के कारण सूर्य के घोडो की गति मन्द हो गयी । इसी हेतु से दिवस लम्बे है। ___ भाचार्य जी की इस समस्या-पूति से मिद्धगज को अत्यन्त प्रसन्नता हुई। उमी ममय इन्हे 'कवि कटार मल्ल' की उपाधि से भूपित किया गया।
एक अन्य घटना आचार्य हेमचन्द्र के शासनकाल की है। किमी ममय आचार्य हेमचन्द्र का पादार्पण कुमारपाल की सभा में हुआ। यहा पर एक परित ने हेमचन्द्राचार्य का उपहास करते हुए कहा
मागतो हेमगोपाल दडकवलमुहहन् । -दड और कवल को धारण किए हेम गोपाल आ पहुचा है।
उस ममय मुनि रामचन्द्र भी हेगचन्द्राचार्य के माथ थे। उन्हे अपने गुरु के प्रति किया गया यह उपहाम अच्छा नहीं लगा। छूटते ही इम पक्ति की पूर्ति करते हुए उन्होंने कहा
पड्दर्शन पशु प्रायान् चारयान् जनवाटके । -छह दशनरूपी पशुओ को जैन वाटिका मे चगते हुए हेम गोपाल आ गए हैं।
मुनि रामचन्द्र की इम ममस्या-पूर्ति ने नयको अवाक् कर दिया।
रामचन्द्राचार्य की माहित्य-साधना अनुपम थी। रघुविलास, मरलविलास, यदुविलाम प्रमृति एकादश नाटक और 'मुधापालग' नामक सुभापित कोश भी उन्होंने लिखा । भाचार्य जी की मुख्य प्रमिद्वि नाट्यशास्त्र की रचना से हुई।
नाट्यशास्त्र मे चालीम मे भी अधिक नाटको के उद्वरण प्रस्तुत है। इससे उनकी गम्भीर अध्ययनशीलता का परिचय मिलता है। इस कृति मे अभिनव कलाओ की व्यजना और मौर्यकाल के इतिहास की सुन्दर झाकी भी प्रस्तुत है। लौकिक विपयो पर सागोपाग विवेचन करने मे आचार्य रामचन्द्र जैसा साहसगुण विग्ले ही जैनाचार्यों मे प्रवाट हुआ है।
आचार्य रामचन्द्र के माथ प्रवन्ध शतकर्तृक विशेपण भी आता है। यह विशेषण उनके मी गन्यो का सूचक हो सकता है या इसी नाम के किसी एक ग्रन्थ का परिचायक है। __ न्यायशास्त्र, प्रमाणशास्त्र, काव्यशास्त्र और णब्दशास्त्र-ये उनके अधिकृत विषय ये।
विपुल ख्याति प्राप्त होने पर भी आचार्य जी के गृहस्थ जीवन का परिचय