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________________ ३३२ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य 'पर्याप्त रूप से उपलब्ध नही है। आचार्य जी द्वारा रचित 'नल विलास' नाटक के सपादक पडित लालचन्द्र के अभिमत से उनका जन्म वी०नि० १६१५ (वि० स० ११४५), सूरि पद वी० नि० १६३६ (वि० स० ११६६), आचार्य 'पदारोहण वी० नि० १६६६ (वि० स० १२२६) मे हुआ। उनका स्वर्गवास इतिहास की अत्यन्त दुखान्त घटना है। हेमचन्द्राचार्य का उत्तराधिकार शिष्य रामचन्द्र को मिला। इससे उनके गुरुभ्राता वालचन्द्र मुनि मे ईर्ष्या का विषाक्त अकुर फूट पडा । आचार्य हेमचन्द्र के बाद महाराज कुमारपाल की मृत्यु वत्तीम दिन के बाद ही हो गई थी। कुमारपाल का भतीजा अजपाल सिंहासन पर आरूढ हुआ। बालचन्द्र मुनि की अजपाल के साथ गाढी मित्रता हो गयी। मुनि जी ने रामचन्द्र के विरुद्ध अजपाल के कान भर दिये थे। आचार्य हेमचन्द्र के साथ अजपाल का पूर्व वैर भी था। उस वैर का बदला रामचन्द्र के साथ लिया गया। उन्हे मरवाने के लिए लोमहर्षक योजना बनी। अभय आदि श्रेष्ठी जनो ने इस योजना को विफल कर देने हेतु बहुत प्रयत्न किए। उनका कोई प्रयत्न रामचन्द्र सूरि को इस षड्यन्त्र से मुक्त न कर सका। हेमचन्द्राचार्य के स्वर्गवास से एक वर्ष बाद ही वी० नि० १७०० (वि० १२३०) मे सतप्त लोहे की मर्मान्त वेदना को सहते हुए उन्हे मृत्यु से आलिंगन करना पड़ा। उनका भौतिक देह से सम्बन्ध टूट गया पर यशस्वी व्यक्तित्व और स्फुरणशील मनीषा का वैभव आज भी उनके माहित्य-दर्पण मे प्रतिबिम्बत है।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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