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________________ आस्था-नालम्बन आचार्य अभयदेव ३०१ में दर्शन देने गए और उन्होंने पूछा-"श्रावको । वन्दन-वेला का अतिम कैमे हुमा?" श्रावको ने नम्र होकर माल-भरे जहाजी को समुद्र में नष्ट हो जाने का चिन्ताजनक वृत्तान्त कह सुनाया। आचार्य अभयदेव बोले-"धावको। चिन्ना मत करो, धर्म के प्रताप से सब ठीक होगा।" आचार्य अभयदेव के इन शब्दो से सबको सतोप मिला। दूसरे दिन सुरक्षित माल मिल जाने की सूचना पाकर सबको अत्यधिक प्रसन्नता हुई। आचार्य अभयदेव के पाम जाकर समवेत स्वर में श्रावको ने निवेदन किया"इस मान को विक्री से जो भी लाभ हमे प्राप्त होगा, उसका अर्धाश भाग टीकासाहित्य के लेखन कार्य मे व्यय करेंगे।" इन धावको द्वारा प्रदत्त धनराशि से टीका माहित्य की अनेक प्रतिलिपिया निर्मित हुई। तत्कालीन प्रमुख आचार्यों के पास कई स्थानो पर उनका टीकामाहित्य पहुचाया गया। आचार्य अभयदेव की मर्वत्र प्रमिद्धि हुई लोग कहने सगे-"सिद्धान्त पारगामी, आगम साहित्य के निष्णात विद्वान आचाय अभयदेव है।" ___ आचार्य मुधर्मा के आगम साहित्य के गूडायों को समझने के लिए आचार्य नमयदेव की टीकाए कुजी के समान मानी गयी हैं। ये टीकाए सक्षिप्त और शब्दार्थ-प्रधान है । यथावश्यक इनमें कहीं-कहीं विपय का पर्याप्त विवेचन, सद्धातिक तत्त्वो की अभिव्यक्तिपा, दार्शनिक चर्चाए, कयानको के मत-मतान्तरो तथा पाठान्तरो के उल्लेख और सामाजिक, राजनयिक अनेक शब्दो की परिमापाए प्रस्तुत की गयी हैं। आचार्य अभयदेव का टीका साहित्य विशाल परिमाण में है। कई टीकाओ मे उन्होने ममापन-काल का सकैत भी दिया है। स्थानाग की वृत्ति का समापन अगितसिंह सूरि के शिष्य यशोदेवगणी की सहायता से वि० स० ११२० में पाटण में हुआ था। यह टीका १४२५० श्लोक परिमाण है। समवायाग वृत्ति ३५७५ श्लोक परिमाण है। इसका समापन भी वि० स० ११२० मे हुआ है। ____ व्याख्या प्रज्ञप्ति वृत्ति १८६१६ श्लोक परिमाण है। आचार्य शीलाक के अतिरिक्त अभयदेव सूरि से पूर्व किसी ने इस विशाल ग्रन्य पर टीका लिखने का साहस नहीं किया था। अत काल-प्रभाव से शीलाक की टीकाजो के लुप्त हो जाने के बाद इस सूत्र की व्याख्या में लेखनी उठाने वाले अभयदेव सूरि सवप्रथम टीकाकार ये । इनकी यह टीका वि० स० ११२८ में सम्पन्न हुई थी। ज्ञाता धर्मकथा वृत्ति ३८०० श्लोक परिमाण है। यह सूत्रस्पर्शी शब्दार्थप्रधान वृत्ति है। इसका परिसमापन वि० ११२० विजयादशमी के दिन पाटण
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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