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३०२ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
मे हुआ था। ___ उपासकदशाग वृत्ति ८१२ श्लोक परिमाण, अन्तकृद्दशा वृत्ति ८६९ श्लोक परिमाण, प्रश्न व्याकरण वृत्ति ४६०० श्लोक परिमाण, विपाक वृत्ति ६०० श्लोक परिमाण हे । अगो के अतिरिक्त एक ही वृत्ति उपाग पर लिखी है। यह वृत्ति ३१२५ श्लोक परिमाण है।
उपाग सहित इन वृत्तियो का कुल परिमाण ५०७६६ श्लोक परिमाण है। इनके यथावश्यक सशोधन करने का श्रेय टीकाकार ने आगम परम्परा के विशेषज्ञ संघ-प्रमुख, निवृत्ति-कुलीन द्रोणाचार्य को दिया है। __ इन टीकाओ में तीन टीकाए-स्थानागवृत्ति, समवायागवृत्ति, ज्ञाताधर्मकथा वृत्ति वि० ११२० मे सम्पन्न हुई है। इन तीनो का परिमाण २१६२५ श्लोक है। एक वर्ष में इतनी विशाल साहित्यनिधि का निर्माण कर लेना उनकी शीघ्र रचनात्मक शक्ति का परिचायक है।
आचार्य अभयदेव ने आगमो पर टीकाए लिखकर ही सतोष नहीं किया। उनकी लेखनी अन्य ग्रन्थो पर भी चली। जिनभद्रगणी विरचित 'विशेषावश्यक भाष्य' पर टीका, आचार्य हरिभद्र विरचित पोडणक पर टीका और देवेन्द्र सूरि विरचित 'शतारि प्रकरण' पर टीका आचार्य अभयदेव की टीका साहित्य को अनन्य भेट थी।
धोलका गाव मे आचार्य हरिभद्र विरचित पचासन ग्रन्थ पर वि०स० ११२४ में उन्होंने टीका की रचना की। निगोद पतिशिका, पच ग्रन्थ विचार-सग्रहणी, पुद्गल पतिशिका-ये तीनो ग्रन्थ उनके तात्त्विक ज्ञान की सूचना देते हैं।
गुजरात के कपडगज गाव मे वीर निर्वाण १६०५ (वि०११३५) मे उनका स्वर्गवास हो गया। __ जैन आगमो की सुगम व्याख्याए प्रस्तुत कर टीकाकार आचार्य अभयदेव जैन समाज की आस्था के सुदृढ आलवन बने ।
आधार-स्थल
१ स चावगाढसिद्धान्त तत्त्वप्रेक्षानुमानत ।
वभौ महाक्रियानिष्ठ श्री सघाम्भोजभास्कर ||७|| २ अगद्वय विनाऽन्येषा कालादुच्छेदमाययु ।
वृत्तयस्तन सघानुग्रहायाध कुरुद्यमम् ॥१०॥ ३ श्रुत्वेत्यङ्गीचकाराथ कार्य दुष्करमप्यद ।
आचामाम्लानि चारब्ध ग्रन्थसपूर्णतावधि ॥११२॥
(प्रभा० चरित, पनाक १६०)