________________
३०० जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
खरतरगच्छ वृहद गुर्वावलि ग्रन्थ के अनुसार गुजरात के खभात नगर मे टीका- रचना से पूर्व ही आवार्य अभयदेव कुष्ट रोग से आक्रान्त हो गए थे । शासन देवी के द्वारा टीका रचना की प्रार्थना किए जाने पर आचार्य अभयदेव ने कहा - "देवी । मैं इस गलिताग शरीर से सूत्र टीका करने में समर्थ नही हू ।"
शासनदेवी ने कहा - "आर्य | आप चिन्ता न करें। नवागी सूत्रो के रचनाकार एव जैन दर्शन के महान् प्रभावक आप वनोगे ।"
विविध तीर्थंकल्प के अनुसार आचार्य अभयदेव को खभात ग्राम मे अतिसार रोग हो गया था । रोग को वढते देख उन्होंने अनशन की बात सोची । निकटवर्ती गावो से पाक्षिक प्रतिक्रमणार्थं आने वाले श्रावक समाज को दो दिन पहले ही 'मिच्छामि दुक्कड' प्रदानार्थं विशेष रूप से सूचित कर दिया गया था । प्राप्त सूचना के अनुसार तयोदशी के दिन श्रावक एकत्रित हुए । उमी रात्रि को शासन देवी ने प्रकट होकर आचार्य अभयदेव को टीका रचना की प्रेरणा दी । देवी की प्रार्थना से ससघ वाहिनी पर आरूढ होकर अभयदेव खभात गए । सेढिका नदी तट पर स्तोत्र की रचना की । पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रकट हुई। जैन दर्शन की महती प्रभावना हुई। अभयदेव का कुष्ट रोग खत्म हो गया । शरीर सुवर्ण की तरह चमक उठा।"
जैन शासन की अतिशय प्रभावनाकारक यह घटना प्रवल प्रसन्नता का निमित्तभूत होने के कारण इसे मनोवैज्ञानिक भूमिका पर आचार्य अभयदेव के रोगोपशान्ति का प्रमुख हेतु माना जा सकता है ।
स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने के बाद आचार्य अभयदेव ने पारण मे टीकारचना का कार्य किया था । टीका लेखन में उन्होने खटिका का उपयोग किया था ।
प्रभावक चरित्र के अनुसार टीका साहित्य की प्रतिलिपियो को तैयार कराने का कार्य ताम्रलिप्ति आशापल्ली धवलक्क नगरी के चौरासी तत्त्वज्ञ सुदक्ष श्रावको ने किया ।'
इस कार्य मे तीन लाख द्रमक ( मुद्रा - विशेष ) लगे थे जिसकी व्यवस्था श्री
भूपति ने की थी । शासन देवी के द्वारा यह द्रव्य राशि प्रदान की गयी थी, 'ऐसा उल्लेख प्रभावक-चरित्र और पुरातन प्रबन्ध - सग्रह - इन दोनो ग्रन्थो मे है ।
खरतरगच्छ वृहद गुर्वावलि के अनुसार इस कार्य मे पाल्हउदा ग्राम के श्रावको का महत्त्वपूर्ण अनुदान रहा है । टीका साहित्य रचना का कार्य सम्पन्न करने के बाद आचार्य अभयदेव पाल्हउदा ग्राम मे विहरण कर रहे थे। वहा स्थानीय श्रावक समाज के सामने सकट की घडी उपस्थित हो गयी थी । माल से भरे उनके जहाज समुद्र मे डूबने के समाचार पाकर श्रावक खिन्न थे । यथोचित -समय पर वे धर्म स्थान मे नही पहुच पाए । आचार्य अभयदेव स्वयं उनकी बस्ती