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स्वस्थ परम्परा-सपोपक आचार्य सोमदेव २८३
कारण आचार्य सोमदेव द्वारा प्रस्तुत मौलिक सामग्री, इस ग्रन्थ मे है। ___आचार्य सोमदेव जितने आध्यात्मिक थे उससे अधिक व्यवहारपरक थे। उन्होने अपने साहित्य मे धर्म के व्यावहारिक पक्षो को बहुत स्पष्ट किया है। उपासकाध्ययन के चौथे. कल्प का नाम मूढतोन्मथन है। इसमे लोक-प्रचलित मूढताओ एव धर्म के नाम पर प्रवृत्त रूढ- परम्पराओ को (धर्म-भावना से नदी मे स्नान, यक्षादि का पूजन आदि) मिथ्यात्व का परिपोषक बताकर उन पर आचार्य सोमदेव ने करारा प्रहार किया है। इस कृति के ३२वे कल्प से लेकर आगे के कल्पो मे श्रावकचर्या का विशद वर्णन हे । यशस्तिलक की कथावस्तु के माध्यम से आचार्य सोमदेव ने खान-पान की विशुद्धि पर विशेष बल दिया है एव प्राचीन सयम-प्रधान भारतीय संस्कृति को उज्जीवित किया है।
पण्णवति प्रकरण, महेन्द्रमातलि सकल्प, युक्ति चिंतामणिस्तव ग्रन्थ भी सोमदेव के माने गए है। वर्तमान मे ये ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। ____ आचार्य सोमदेव स्वाभिमानी वृत्ति के थे। अपने काव्य की प्रशसा मे वे कहते हैं
कर्णाञ्जलिपुटै पातु चेत मूक्तामृते यदि। श्रूयता सोमदेवस्य नव्या काव्योक्तियुक्तय ॥२४६॥
(आश्वास २) -आपका चित्त कर्णाञ्जलि पुट से सूक्तामृत पीना चाहता है तो सोमदेव के काव्योक्त युक्तियो का श्रवण करे।
आचार्य सोमदेव के गुरु नेमिदेव भी प्रकाण्ड विद्वान् उत्कृष्ट तप धर्म के आराधक एव महावादी विजेता थे। जिनदास कृत उपासकाध्ययन टीका मे उन्हे ६३ महावादियो के विजेता बताकर उनके विशिष्ट ज्ञान की सूचना दी है।
वाद-कुशल आचार्यों में आचार्य सोमदेव ने विशेष ख्याति अर्जित की। स्याद्वाद-अंचल सिंह, तार्किक चक्रवर्ती, वादीभ पचानन, वाक्कल्लोल-पयोनिधि एव कविकुशल-राज आदि अनेक भारी उपाधियो से वे मडित हुए थे।
ब्रिटिशकालीन हैदरावाद राज्य के परभणी क्षेत्र में प्राप्त ताम्रपत्र में यशस्तिलक काव्य रचना के सात वर्प पश्चात् सोमदेव को दिए गए दान का उल्लेख एव चालक्य सामन्तो की वशावलि भी है।
कन्नोज के राजा महेन्द्रपाल के आग्रह से उन्होंने यशस्तिलक काव्य की रचना की थी। ___ राष्ट्रकूट सम्राट् कृष्णराज के सामन्त चूडामणि चालुक्य वशीय अरिकेशरी के प्रथम पुत्र महालक्ष्मीसम्पन्न वाक्रराज नप की राजधानी गगधारा थी। कृष्णराज ने सिंहल, चोल, चेर प्रभृति अनेक महीपतियो पर विजय प्राप्त की थी।