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२६४ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
प्रमाण परीक्षा
यह प्रमाण विषयक कृति है। प्रत्यक्ष, परोक्ष आदि के भेद-प्रभेदो का वर्णन इसमे प्राप्त है और 'आप्त परीक्षा' कृति का उल्लेख भी है। इससे इस कृति की रचना 'आप्त परीक्षा के बाद हुई प्रमाणित होती है। पत्र परीक्षा एव सत्यशासन परीक्षा __पत्र परीक्षा आचार्य विद्यानन्द की लघु रचना है। सत्य शासन परीक्षा बहुत लम्बे समय तक अप्राप्य रही है, यह विद्यानन्द की अन्तिम रचना है। श्री पुरपार्श्व स्तोत्र __इस ग्रथ की रचना देवागम की शैली मे हुई है, अत इनदोनो कृतियो के श्लोको का परस्पर साम्य भी है। ____ आचार्य विद्यानन्द परीक्षा-परायण थे। उन्होने परीक्षान्त कृतियो मे जैन दर्शन के तत्त्वो को भी युक्ति-निकप पर परीक्षापूर्वक युग के सामने प्रस्तुत किया है। ___आचार्य विद्यानन्द की सूक्ष्म प्रज्ञा समग्र भारतीय दर्शनो के उपवन मे विहरण कर प्रौढता प्राप्त कर चुकी थी । अत उनकी कृतियो मे विविध दर्शनो के अध्ययन का आनन्द एकसाथ सहज ही प्राप्त हो जाता है। ___ आचार्य समतभद्र का देवागम, अकलक देव की अण्टशती, आचार्य उमास्वाति का तत्त्वार्थ सूत्र, आचार्य विद्यानन्द की रुचि के ग्रथ थे। अत इन तीनोपर उन्होने टीका साहित्य लिखा है।
आचार्य विद्यानन्द के साहित्य को पढने से लगता है उन पर आचार्य उमास्वाति, सिद्धसेन, समतभद्र स्वामी, पात्र स्वामी, भट्ट अकलक देव और कुमार नन्दी भट्टारक आदि विद्वानो का प्रभाव था। ___ आचार्य विद्यानन्द के ग्रथो मे जो गभीरता पाई जाती है उसका कारण है कि उन्हे अपने पूर्ववर्ती जैन ग्रथकारो की साहित्यनिधि से पर्याप्त सामग्री उपलब्ध हो सकी थी। ___ आचार्य विद्यानन्द ने अपने ग्रन्थो मे मीमासक विद्वान् जैमिनी शवर, कुमारिल भट्ट, प्रभाकर, कणाद दर्शन के विद्वान् व्योमशिवाचार्य, नैयायिक विद्वान् उद्योतकर आदि के ग्रन्थो का समालोचन जिस कुशलता से अपने ग्रथो मे किया है उसी कुशलता से बौद्ध विद्वान् धर्मकीर्ति, प्रज्ञाकर, धर्मोत्तर आदि का भी अष्ट सहस्री प्रमाण परीक्षा आदि ग्रन्थो मे सम्यक् निरसन किया है। इससे प्रतीत होता है कि वैदिक दर्शन की तरह बौद्ध दर्शन के भी वे गम्भीर पाठी थे।
आचार्य विद्यानन्द के ग्रथो से प्रभावित होने वाले आचार्यों मे आचार्य माणिक्यनन्दी, वादिराज, प्रभाचन्द्र, अभयदेव, देवसूरि, हेमचन्द्र, अभिनव धर्म भूषण और