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वाड्मय-वारिधि आचार्य विद्यानन्द २६३
तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक
यह टीका आचार्य उमास्वाति के तत्त्वार्थ सूत्र पर है। इस ग्रथ का परिमाण १८००० श्लोक है। यह टीका आचार्य विद्यानन्द की परिमार्जित एव प्रसन्न रचना है। इसमे लेखक काअगाध पाडित्य प्रतिबिम्बित है। आचार्य अकलक की राजवार्तिक मे जो गहराई न उभर पाई वह इसमे उभरी है। इस कृति से उनके महान् सैद्धान्तिक ज्ञान का परिचय मिलता है। इसकी शैली मीमासक मेधावी कुमारिल भट्ट की शैली से प्रतिस्पर्धा करती हुई प्रतीत होती है। इस ग्रथ के नामकरण मे भी कुमारिल भट्ट के 'मीमासक श्लोक वार्तिक' ग्रथ की प्रतिच्छाया है। अष्ट सहस्री ___ यह रचना आचार्य समतभद्र की आप्त मीमासा पर है। यथार्थ मे आप्त मीमासा पर निर्मित आचार्य अकलक की टीका की टीका है। अष्टशती के प्रत्येक पद्य की व्याख्या इस कृति मे स्पष्टता से हुई है। अष्टसहती टीका आठ सहस्र श्लोक परिमाण है । यह तथ्य इसके नामकरण से भी स्पष्ट है । इस कृति को पढ़ने से तीनो ग्रथो की (आप्त मीमासा, अष्टशती, अष्टसहस्री) का एकसाथ स्वाध्याय हो जाता है । इस ग्रथ की रचना कर आचार्य विद्यानन्द ने आचार्य अकलक भट्ट के गूढ ग्रथ को समझने का मार्ग सुगम किया है । आचार्य अकलक को चमकाने का काम आचार्य विद्यानन्द ने किया है । अत कतिपय विद्वानो मे आचार्य विद्यानन्द को आचार्य अकलक का शिष्य मान लेने मे भ्रान्ति भी हो गई थी। युक्त्यनुशासनालकार
यह नथ आचार्य समतभद्र स्वामी का स्तुति-प्रधान नथ है । इसके ६४ पद्य है। प्रत्येक पद्य अत्यत गूढ है । आचार्य विद्यानन्द की 'युक्त्यनुशासनालकार' की टीका को रचना इसी नथ पर हुई है । यह टीका युक्त्यनुशासन जैसे दुरूह ग्रथ मे प्रवेश पाने का राजपथ है । आप्त परीक्षा और प्रमाण परीक्षा मे युक्त्यनुशासनालकार
का उल्लेख है।
विद्यानन्द महोदय
यह विद्यानन्द की सर्वप्रथम रचना है जो आज उपलब्ध नही है। श्लोकवार्तिक आदि टीकाओ मे इस ग्रन्थ का अनेक स्थानो पर उल्लेख है। आप्त परीक्षा
इस ग्रथ मे १२४ कारिकाए है । इसमे सर्वज्ञ के स्वरूप का विवेचन हे । ईश्वर, कपिल, वुद्ध और ब्रह्म के स्वरूप का युक्तिपूर्ण निरसन भी है।