________________
१६. जिनवाणी सगायक आचार्य जिनसेन
दिगम्बर ग्रन्यो के व्याख्याकार आचार्यों मे एक नाम आचार्य जिनसेन का भी है। आचार्य जिनसेन वीरसेन के सुयोग्य शिप्य एव सफल उत्तराधिकारी थे। वे सिद्धान्तो के प्रकृष्ट ज्ञाता तथा कविमेधा से सम्पन्न थे। कर्णवेध सस्कार होने से पूर्व ही उन्होने मुनिधर्म स्वीकार कर लिया था। सरस्वती की उन पर अपार कृपा थी। विनय-नम्रता के गुणो से उनकी विद्या विशेष रूप से शोभायमान थी। गुणभद्र भदन्त की दृष्टि मे हिमालय से गगा, उदयाचल से भास्कर की भाति वीरसेन से जिनसेन का उदय हुआ था।
आचार्य वीरसेन की प्रारभ की हुई जयधवला टीका-कार्य को आचार्य जिनसेन ने पूर्ण किया था। जयधवला टीका आचार्य गुणभद्र के रचित कषाय प्राभृत ग्रथ की विशिष्ट व्याख्या है। दिगम्बर साहित्य मे विविध सामग्री से परिपूर्ण साठ हजार श्लोक परिमाण इस ग्रथ का महत्त्वपूर्ण स्थान है । आचार्य वीरसेन ने इस ग्रथ के वीस हजार श्लोक रचे, अवशिष्ट चालीस हजार श्लोको की रचना आचार्य जिनसेन की है।
मेघदूत काव्य के आधार पर 'मदाक्राता वृत्त' मे आचार्य जिनसेन ने पार्वाभ्युदय काव्य की रचना की। यह सस्कृत भाषा मे निवद्ध उत्तम खडकाव्य है।। ___ आचार्य जिनसेन को ऐतिहासिक रचना महापुराण नामक ग्रथ है । इस ग्रथ का प्रारभ आचार्य जिनसेन ने किया पर वे इसे पूर्ण नही कर पाए। अपने गुरु वीरसेन की भाति उनका स्वर्गवास रचना पूर्ण होने से पहले ही हो गया था। उनकी अवशिष्ट रचना को शिष्य गुणभद्र ने पूर्ण किया था। इस महापुराण गथ के दो भाग हैं-आदिपुराण और उत्तरपुराण ।
आदि पुराण सूक्त रत्नो से समलकृत महाकाव्य भी है। इसके ४७ पर्व और वारह सहस्र श्लोक है। इनमे १०३८० श्लोको के कर्ता आचार्य जिनसेन है।
आचार्य गुणभद्र ने आदि पुराण के शेष १६२० श्लोको की एव उत्तरपुराण के अस्सी सहस्र श्लोक की रचना की थी।
आदिनाथ तीर्थकर ऋषभ का जीवन-चरित्र आदिपुराण मे तथा अवशिष्ट तीर्थ का जीवन-चरित्र उत्तरपुराण मे है।