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१५. विश्रुत व्यक्तित्व आचार्य वीरसेन
बाचायं वीरसेन दिगम्बर परपरा के प्रकाण्ड विद्वान् आचार्य थे। वे आर्य नन्दी के गिप्य थे। ज्योतिष, व्याकरण,प्रमाणशास्त्र एव छदमान्न का उन्हे प्रप्ट ज्ञान या। उनकी सर्वतोगामिनी प्रज्ञा के नाधार पर विद्वानो को उनमे सवंश जैसा माभास होता था।
दिगम्बर परपरा का पट्यण्डागम प्रय गूढाएर दुरूह है। हम अप पर आचार्य वीरसेन ने प्राकृन-सस्कृत-मिश्रित ७२ सहन श्लोक परिमाण धवला नामक टीका लिया है। पट्यण्टागम ग्रथ पर जितनी टीकाए लिखी गई हैं उनमे यह टीका सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। धवला प्रशस्ति के अनुमार यह प्रथ वानागपुर मे वी० नि० १३४३ (वि० म० ८७३) में सपन्न हुआ था। इस प्रय मे आनायं उमाम्याति पूज्यपाद मादि अनेक श्वेताम्बर-दिगम्बर विद्वानो के ग्रथो का उल्लेख है। इससे आचार्य वीरनेन के व्यापक ज्ञान को सूचना मिलती है। __ आचार्य वीरसेन ने 'कपाय पाहुड' य पर जय धवला नाम की टीका लिखी यी। इस टीका की रचनावीम सहस श्लोक परिमाण ही वे कर पाए थे। इस महत्त्वपूर्ण कार्य के सपन्न होने से पूर्व ही उनका स्वर्गवारा हो गया। । ये दोनो टीकाए विविध मामग्री से परिपूर्ण एव पाठको के लिए ज्ञानवर्धक
आचार्य वीरसेन का सिद्धात भूपद्धति टीका ग्रथ वर्तमान मे अनुपलब्ध है।
राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष प्रथम के समय में वीरमेन ने इन टीकाओ का निर्माण किया था। अमोघवर्ष का नाम धवल और अतिशय धवल भी था। इन नामो के आधार पर ही सभवत वीरसेन ने अपनी टीकाओ का नाम धवला और जय धवला रखा।
अपने युग के विद्युत विद्वान् दिगम्बर ग्रथो के महान् व्याख्याकार आचार्य वीरसेन का समय उनकी टीका प्रशस्ति मे प्राप्त उरलेखानुसार वी०नि० की १४वी (विक्रम स्वी) सदी प्रमाणित है।