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वरिष्ठ विद्वान् आचार्य वप्पभट्टि २५५
मारा दायित्व सौना । अनशन पूर्वक वे स्वर्ग को प्राप्त हुए ।
बुद्धिवन से वणभट्ट ने कई स्त्री कार्य किए। बगान प्रान्त के अधिपति धर्मरान और लाम राजा के बीच में लम्बे समय से पैर चल रहा था । लक्षणावती बगाल की राजधानी थी। धर्मराज को शास्त्रार्थ के लिए आमन्त्रण मिलने पर आम यी ओर से पट्टि नक्षणावती गए। धर्मराज को नभा में 'वर्द्धन कुजर' नामक दिग्गज विहान के साथ उन वाद-विवाद हुआ। छह महीने तक यह शास्त्रार्थ चला । चप्पभट्टिको अन्त में विजय हुई । धमराज ने उन्हें 'वादी कुजर केगरी' की उपाधि ने मति दिया। इन शास्वार्थ के बाद आम राजा और धर्मराज का वैर सदा गदा के लिए गान्न हो गया। उसने जैन दर्शन को महती प्रभावना हुई ।
मथुरा के वाकूपति नामक नाय योगी के मन्त्र-प्रयोग मे जाम राजा विभिन्न थे । एक दिन आग ने बप्पभट्टि ने कहा- "आपने विद्याबल से मेरे जैसे व्यक्तियों को प्रभावित कर जैन श्रावक बनाने का कार्य किया है। आपके नामयं को तब पहचानें जबकि चापति योगो को आप प्रतिरोध दे सके ।" गजा आम के वचन पर चप्पभट्टि वहा से उठे जीर मथुरा और प्रस्थित हुए। वहा
वाक्पति ने नयन पोले,
पहुचकर ध्यानस्य वाक्पति के सामने कई लकबीने उनसे नाव धमचर्चा की। पट्टि जिने पर प्रभु का स्वरूप ममनाया और विभिन्न प्रकार ने अध्यात्म बोध देवर ने जन दीक्षा प्रदान की ।
वष्पभट्टि के शिष्य गोविन्द सुरि और नन्न मुनि के व्यक्तित्व से भी आम अत्यधिक प्रभावित थे। मुज्य निमित्त जाचार पट्टि ही थे ।
चप्पभट्टि साहित्यकार भी थे। उन्होंने ५२ प्रबन्धों का निर्माण किया। उनमे ने 'चतुर्विगति जिनस्तुति' बीर 'सरस्वती स्नोत' ये दो गन्य ही वर्तमान मे उपलब्ध है ।
धनपाल की तिनक मजरो मे मद्रकीति-निर्मित 'वारागण' नामक ग्रन्थ का हुआ है। मद्रकीति वप्पभट्टि का ही गुरु- प्रदत्त नाम था ।
आम राजा और बप मट्टि के मंत्री सम्बन्ध मानव जाति के लिए कल्याणकर सिद्ध हुए ।
आम के पुत्र का नाम दुन्दुक था । आम के स्वगवास के बाद दुन्दुक ने राजमिहान ग्रहण किया । वपट्टि को दुन्दुक के द्वारा पर्याप्त सम्मान प्राप्त हुआ । दुन्दुक के पुत्र का नाम मांज या । परितो ने बताया - "दुन्दुक को मारकर भोज राजनिहामन ग्रहण करेगा ।" दुन्दुक ने बालक भोज को मारना चाहा । सयोगवश की सूचना भोज की माता को मिल गयी थी । उसने उसे ननिहाल भेज दिया था । कुछ समय के वाद दुन्दुक ने राजपुरुपी के माथ आचार्य वप्पभट्टि को वहा से प्रेपित किया और कहा, "भोज को लेकर आये ।” राजा के आदेश से वप्पभट्टि चले । मार्ग में उन्होंने सोचा—यह महान् सकट का कार्य है । 'भोज के द्वारा दुन्दुक की