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२५४ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
" विकार हेतु उपस्थित होने पर भी जो कुपथ का अनुसरण नहीं करते वे धीर होते है।
" मेरी इस शिक्षा को स्मृति मे रखना, ब्रह्मचर्य की साधना मे विशेष जागरुक रहना।"
शिष्य बप्पभट्टि को उचित प्रकार से मार्ग-दर्शन देकर आचार्य सिद्धसेन ने उन्हे आम राजा के पास पुन प्रेपित किया।
विशेष पद से अलकृत मुनि वप्पभट्टि का आगमन आम के लिए हर्प-वर्धक था। उन्होने बप्पट्टि का भारी स्वागत किया एवं उनसे क्लेश-विनाशिनी, कल्याणकारिणी, सारभूत धर्म देशना को सुना।
राजा की प्रवल भक्ति के कारण वप्पभट्टि का लम्बे समय तक वही विराजना हुआ। दिन-प्रतिदिन दोनो का प्रीतिभाव वृद्धिंगत होता गया।
आचार्य वप्पभट्टि की काव्य-रचना ने आम को अत्यधिक प्रभावित किया। कभी-कभी तत्काल पूछे गये प्रश्न के उत्तर मे अथवा तत्काल प्रदत्त कवितामयी समस्या के समाधान मे वप्पभट्टि द्वारा रचित श्लोको को सुनकर आम मुग्ध हो जाते, उन्हे वप्पमट्टि मे सर्वज्ञ जैसा आभास होता।
ब्रह्मचर्य व्रत की परीक्षा के लिए एक बार निशा काल मे 'आम' ने पुरुष परिधान पहनाकर गणिका को बप्पभट्टि के पास भेजा।
बप्पभट्टि सानन्द सोये हुए थे। पण्यागना नि शब्द गति से चलती हुई बप्पट्टि के शयन-कक्ष तक पहुची और उनके चरणो की उपासना (मर्दन आदि क्रिया) करने लगी। नारी के कोमल कर स्पर्श होते ही वप्पभट्टि सजग हो गए और तत्काल उठकर वोले, "पण्यागने | वायु से तृणो को उडाया जा सकता है, काचन गिरि उसमे नही हिलते। नखो के प्रहार से शिलाखण्ड को नही तोडा जा सकता। तुम जिस मार्ग से आयी हो उसी मार्ग से सकुशल लौट जाने मे ही तुम्हारा भला है । यहा तुम्हारा कोई काम नहीं है।"
वारवधू के भ्रू-विक्षेप आदि प्रयास निप्फल गए। वप्पभट्टि अपने लक्ष्य से किंचित भी विचलित नही हुए।
गणिका आम के पास जाकर बोली, "भूस्वामिन् । वप्पभट्टि अपने व्रत में पापाण की भाति दृढ है। तिलतुप मान भी उनका मन मेरे हाव-भाव पर चलित नही हुआ।"
वप्पभट्टि के दृढ मनोवल पर आम को प्रसन्नता हई और उनके दर्शन करने पर राजा को सकोच भी हुआ। वप्पभट्टि ने उन्हे तोप देते हुए कहा, "राजन् । विशेष चिन्तन की कोई वात नही है। राजा को सव प्रकार की परीक्षा लेने का अधिकार होता है।"
वृद्धावस्था मे आचार्य सिद्धसेन ने वप्पट्टि को अपने पास बुलाकर गण का