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अमेय मेधा के धनी आचार्य हरिभद्र २४५ अपने को अल्पमति कहकर परिचय दिया है। यह टीका बाईस हजार श्लोक परिमाण है।
दशवकालिक की नियुक्ति के आधार पर 'दशवकालिक वृत्ति' लिखी गयी है। इसका नाम शिष्यबोधिनी वृत्ति है । इसे वृहद् वृत्ति भी कहते है। इस वृत्ति प्रणयन का उद्देश्य प्रस्तुत करते हुए सूरिजी ने दशवकालिक के कर्ता शय्यभव आचार्य का पूर्ण परिचय भी प्रस्तुत किया है। ___बारह निर्जरा के भेदो मे ध्यान का मागोपाग विवेचन, दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चरित्राचार, तपाचार, वीर्याचार की व्याख्या, अठारह सहस्र शीलाग का प्रतिपादन श्रमण धर्म की दुर्लभता, भाषा-विवेक, व्रतषट्क, कायपट्क आदि अठारह स्थानक, आचार प्रणिधि, समाधि के चारो प्रकार, भिक्षु स्वस्प, चूलिका मे आए हुए रत्तिजनक तथा अरत्तिजनक कारण और साधु-जीवन की विविध चर्या का स्पष्टीकरण इस वृत्ति के विवेच्य-स्थल है। ___टीका के अन्त मे टीकाकार ने अपना परिचय महत्तरा धर्मपुत्र के नाम से दिया है। ____नन्दी और अनुयोगद्वार की टीका नन्दी चूणि और अनुयोगद्वार चूणि की शैली पर लिखी गयी है । नन्दी टीका २३३६ श्लोक परिमाण है और इसमे केवलज्ञान, केवलदर्शन की परिचर्चा, नन्दी चूणि मे वणित सभी विपयो का स्पष्टीकरण तथा अयोग्यदान और फल प्रक्रिया की विवेचना है।
अनुयोगद्वार वृत्ति-अनुयोग वृत्ति का नाम 'शिष्यहिता' है। इसकी रचना नन्दी विवरण के बाद हुई है। मगल आदि शब्दो का विवेचन नन्दीवृत्ति मे हो जाने के कारण इसमे नही किया गया है। ऐसा टीकाकार का उल्लेख है। प्रमाण आदि को समझाने के लिए अगुलो का स्वरूप, प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम की व्याख्या, ज्ञाननय और क्रियानय का वर्णन इस वृत्ति के मुख्य प्रतिपाद्य है।
प्रज्ञापन प्रदेश व्यारया-प्रज्ञापना टीका प्रज्ञापना सूत्र के पदो पर है। यह सक्षिप्त और सरल टीका है । इसके प्रारम्भ मे जिन प्रवचन की महिमा है। भव्य और अभव्य के प्रसग मे वादिमुख्य के श्लोक भी उद्धृत किए गए हैं और प्रज्ञापना सूत्र के विभिन्न विषयो का सरलतापूर्वक विवेचन कर साधारण जनता के लिए जीव और अजीव से सम्बन्धित अनेक सैद्धान्तिक विषयो को भी समझाया गया है। अष्टम पद की व्याख्या मे सज्ञा स्वरूप का विवेचन मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
प्रज्ञापना के ग्यारहवें पद के आधार पर कामशास्त्र-सम्बन्धी सामग्री इसमे उपलब्ध होती है और स्त्री, पुरुष तथा नपुसक के स्वभावगत लक्षणो का भी सुन्दर विवेचन है।
जीवाभिगम सूत्र लघु वृत्ति जैनागम तत्त्व दर्शन का प्रतिपादन करती हुई