________________
१० कोविद कुलालंकार आचार्य अकलंक
-
आचार्य जकलक दक्षिण भारत के प्रभावशाली विद्वान् थे । वे आचाग हरिभद्र के समकालीन थे । उनका जन्म कर्नाटक प्रान्त में हुआ। राष्ट्रकूट राजा शुभतुग के मन्त्री पुरषोत्तम उनके पिता थे। उनके भ्राता थे। उनकी माता का नाम जिनमति था । बालवय में ही ब्रहाचारी जीवन जीने के लिए प्रतिज्ञावद्ध हो चुके ये । अध्ययन के प्रति उनकी गहरी रुचि थी। दोनो भाइयो ने गुप्त बौद्ध मठ मे तकशास्त्र का गम्भीर अध्ययन प्रारम्भ किया। एक दिन यह भेद खुल गया। अकलक पनायन बन्ने में नफन हो गया और निप्पन वही मार दिया गया। आचार्य अकलक के जीवन का यह प्रगण जाचाय नि के यि हम परमहन के घटनाचक्र से मिलता-जुलता है ।
आचार्य आलको भ्रमण दीक्षा जाचाय पद की प्राप्ति के समय का कोई लेख प्राप्त नहीं हो गया है।
जैनाचायों की परम्परा में अनक प्रौटानिक विद्वान् थे और जैन न्याय के प्रमुख व्यवस्थापक ने उनके द्वारा निर्धारित प्रमाणपात्र को परे उत्तरवर्ती जैनाचार्यो के लिए मार्गदर्शक बनी है। अमरकोश का यह प्रसिद्ध श्नोक है
प्रमाणगान कन्य पूज्यपादस्य नटरणम् । हिमन्धानक काव्य रत्नत्रयमपश्चिमम् ॥
कलक की प्रमाण व्यवस्था, पूज्यपाद का लक्षण और धनन्जय का हिमन्धान काव्य -- ये अपश्चिम रत्नत्रयी है।
जैन तर्कशास्त्र का परिमार्जित एव परिष्कृत रूप जाचार्य अकलक के ग्रन्यो मे प्राप्त होता है ।
आचार्य अकलक वाद-कुशन भी थे। वह युग शास्त्रार्थं प्रधान था । एक ओर नानन्दा विश्वविद्यालय के बौद्धाचार्य धर्मपाल के शिष्य धर्मकीर्ति थे, जिन्होने तर्कशास्त्र के पिता दिङ्नाग के दर्शन को शास्त्रार्थी के बल पर चमका दिया था, दूसरी और प्रभाकर, मंडन मिश्र, शकराचार्य, मट्टजयत और वाचस्पति मिश्र को चर्चा-परिचर्चाओ मे धर्मप्रधान भारत भूमि का वातावरण आन्दोलित या । आचार्य अकलक मी इनसे पीछे नही रहे। उन्होने अनेक विद्वानो के साथ शास्त्रार्थ