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भवाब्धिपोत आचार्य भद्रबाहु — द्वितीय - (निर्युक्तिकार ) २२१
उसकी मौत बतायी थी ।
वराहमिहिर के द्वारा शतश प्रयत्न होने पर भी सात दिन से अधिक वालक वच न सका । उसकी मौत का निमित्त अगला थी, जिस पर विल्ली का आकार
। भद्रबाहु का निमित्त ज्ञान सत्य के निकप पर सत्य प्रमाणित हुआ । जन-जन के मुख पर उनका नाम प्रसारित होने लगा । वराहमिहिर के घर पहुचकर लघु
ताके शोक-सतप्त परिवार को भद्रबाहु ने सात्वना प्रदान की थी। आचार्य भद्रवाहु की ज्योतिष विद्या में प्रभावित होकर वहा के राजा जितशत्रु ने उनमे श्रावक धर्म स्वीकार किया था। *
प्राज्ञ अग्रणी आचार्य भद्रबाहु समर्थ माहित्यकार थे । व्यतरदेव के उपद्रव से क्षुब्ध जनमानस को शान्ति प्रदान करने के लिए उन्होने 'उवसग्गहर पाम' इस पक्ति से प्रारम्भ होने वाला विघ्नविनाशक मंगलमय स्तोत्र वनाया था। यह स्तोत्र अत्यधिक चमत्कारिक सिद्ध हुआ । आज भी लोग सकट की घडियो मे हार्दिक निष्ठा से इस स्तोत्र का स्मरण करते हैं ।
प्रन्थकारी के अभिमत से यह व्यतरदेव वराहमिहिर था । तपकवचधारी मुनियो के सामने उसका कोई वल काम न कर सका। अत वह पूर्व वंर से रुष्ट होकर श्रावक समाज को त्रास दे रहा था । भद्रबाहु से सघ ने विनती की "आप जैसे तपस्वी आचार्य के होते हुए भी हम कष्ट पा रहे हैं।"
'कुञ्जरस्कन्धाधिरढोपि भषणर्भक्ष्यते ' - गजारूढ व्यक्ति भी कुत्तो से काटा जा रहा है। श्रावक समाज की इस दर्द भरी प्रार्थना पर आचार्य भद्रवाहु का ध्यान केन्द्रित हुआ । उन्होंने इस प्रमग पर पच श्लोकात्मक महाप्रभावी उक्त स्तोत्र का पूर्वो से उद्वार किया था।"
('भद्रवाहु महिता' नामक ज्योतिष ग्रन्थ की रचना मी नियुक्तिकार भद्रवाहु की बताई गयी है | अर्हत् चूडामणि नामक प्राकृत ग्रन्थ के निर्माण का श्रेय भी उन्हे है । निर्युक्ति साहित्य का सर्जन कर आचार्य भद्रवाहु ने विपुल ख्याति अर्जित की है । ]
निर्युक्तिया आर्या छन्द मे निर्मित पद्यमयी प्राकृत रचनाए है । आगम के व्याख्या ग्रन्थो मे उनका सर्वोच्च स्थान है । काल की दृष्टि से भी वे प्राचीन है । उनकी शैली गूढ और साकेतिक है । आगमों की पारिभाषिक शब्दों की सुस्पष्ट व्याख्या करना उनका मुख्य अभिप्रेत है । किमी भी विषय का पर्याप्त विवेचन प्रस्तुत करती हुई भी ये निर्युक्तिया अपने-आपमे परिपूर्ण है । स्वाभिप्रेत की अभिव्यक्ति
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सफल है । विपय सामग्री की दृष्टि मे सम्पन्न है एव मधुर सूक्तियो के प्रयोग से सरस भी । भारत की सुप्राचीन सभ्यता एव सस्कृति के दर्शन इनमे किए जा सकते है । विभिन्न घटनाओ, दृष्टान्तो, कथानको के सकेतो एव उपयोगी सूचनाओ से गर्भित निर्युक्ति-साहित्य अत्यधिक मूल्यवान् है ।