________________
४ जन धर्म के प्रभावक आचार्य
.........तेईसवे तीर्थंकर पार्श्वप्रभु और चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर थे। परम्परा के रूप मे पार्श्वप्रभु ने ऋषभनाथ से लेकर मध्यवर्ती वाईस तीर्थकरों की ज्ञाननिधि एव सघ-व्यवरथा से न कुछ पाया और न कुछ भगवान् महावीर को दिया। सबकी अपनी भिन्न परम्परा थी और सबका भिन्न शासन था। पार्श्वनाथ की परम्परा के श्रमणो को महावीर के सघ मे प्रवेश करते समय चतुर्याम साधना पद्धति को छोडकर पचमहाव्रत साधना प्रणाली को स्वीकार करना पड़ा था। यह प्रसग भिन्न परम्परा का स्फुट सकेतक है। वर्तमान जैन परम्परा और भगवान् महावीर
वर्तमान जैन शासन की परम्परा भगवान महावीर से सवन्धित है। महावीर का निर्वाण वि. पूर्व ४७० वर्ष मे हुआ था। भगवान् महावीर के शासन मे इन्द्रभूति गौतम प्रमुख १४ हजार साधु, चन्दनवाला प्रमुख ३६ हजार साध्वियां थी।' आनद प्रमुख १ लाख ५६ हजार उपासक और जयन्ती प्रमुख ३ लाख १८ हजार उपासिकाए थी। यह व्रतधारी श्रावकश्राविकाओ की सख्या थी। श्रेणिक, उदयन, चडप्रद्योत, चेटक प्रमुख उम युग का महान शासक वर्ग भगवान् महावीर का अनुयायी था।
सघ-व्यवस्था
भगवान महावीर के सघ की सचालन विधि सुनियोजित थी। उनके सघ में ग्यारह गणधर, नौ गण और सात पद थे। गण की शिक्षा-दीक्षा मे सातो पदाधिकारियो का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता। आचार्य गण सचालन का कार्य करते। उपाध्याय प्रशिक्षण की व्यवस्था करते और सूत्रार्थ की वाचना देते । स्थविर श्रमणो को सयम मे स्थिर करते। प्रवर्तक आचार्य द्वारा निर्दिष्ट धार्मिक प्रवृत्तियो का सघ मे प्रवर्तन करते । गणी श्रमणो के छोटे समूहो का नेतृत्व करते । गणघर दिनचर्या का ध्यान रखते और गणावच्छेदक सघ की अन्तरग व्यवस्था करते तथा धर्म शासन की प्रभावना मे लगे रहते। महावीर सघ और उत्तरवर्ती आचार्य ___ भगवान् महावीर के समकालीन श्रमण परम्परा के अन्य पाच विशाल सम्प्रदाय विद्यमान थे।" उनमे कुछ सम्प्रदाय महावीर के सघ से भी अधिक विस्तृत थे। उन पाचो सम्प्रदायो का नेतृत्व क्रमश (१) पूरणकाश्यप (२) मखलिगोशालक (३) अजितकेश कबलि (४) पकुधकात्यावन (५) सजयवेलापुरत कर रहे थे। परिस्थितियो के वात्याचक्र से वे पाचो सम्प्रदाय काल के गम विलीन हो गए । वर्तमान मे उनका साहित्यिक रूप ही उपलब्ध है।