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अक्षयकोष आचार्य आर्य रक्षित १६५
त च सूरिपदे न्यस्य गुरुवोऽग पर भवम् । अधार्यरक्षिताचार्य प्रायाद् दशपुरपुरम् ।। ११८ ।।
(प्रभा० चरित, पनाक १२) ६ व्यवहार चूणि उद्देशो ७ देविंदवदिएहि मणाणुमावेहिं रविवमअज्जेहिं ।
जुगमासज्ज विहत्तो अणुओगो ता को चउहा ॥ ७७४ ॥ ८ (क) आवश्यक मलयवृत्ति, पवाक ४०० (ख) इत्य भूअधरे ठिआ निगोअवत्तन्वय नियाउपरिमाण च पुच्छिम तुचित्तण सक्केण मज्जरक्खिअसूरी वदिमा उवस्सयस्स अ अन्न ओहुत्त दार कय ।
(विविध तीर्थ कल्प, पृ० १९) & इत्य वत्थपूस मित्तो घयपूसमिनो दुबलियापूसमित्तो अ लद्धिसपन्ना विहरिया।।
(विविध तीथ कल्प, पृ० १६)