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१६४ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
रचनाकार आचार्य श्याम के साथ भी यह घटना अत्यन्त प्रसिद्धि प्राप्त हैं, अत इसे प्रस्तुत प्रकरण मे न देकर आचार्य श्याम के जीवन- प्रसग में संसदर्भ निवद्ध कर दिया गया है।
आर्य रक्षित के पास योग साधक शिष्यो की प्रभावक मडली थी । तीन पुण्यमित्र उनके शिष्य थे --- दुर्बलिका पुष्यमित्र, घृत पुष्यमित्र एव वस्त्र पुष्यमित्र । तीनो शिष्य लब्धिसम्पन्न शिष्य थे' एव आर्य दुर्वलिका पुष्यमित्र ध्यानयोग के विशिष्ट साधक भी थे ।
आर्यरक्षित का प्रमुख विहार-क्षेत्र अवन्ति, मथुरा एव दशपुर ( मन्दसौर) के आसपास का क्षेत्र था । उनके जीवन की विशेष घटनाए इन्ही नगरो से सबंधित है । महाप्रभावी आचार्य रक्षित जी की सम्पूर्ण आयु ७५ वर्ष की थी । उन्होने १६ वर्ष तक युगप्रधान आचार्य पद का दायित्व सभाला । मन्दसौर मे वी० नि० ५६७ ( वि० स० १२७ ) मे देवेन्द्र वन्दित अनुयोग व्यवस्थापक महानुभाव आर्यरक्षित स्वर्गगामी वने । उनकी सम्पूर्ण आयु ७५ वर्ष की थी ।
कुछ इतिहासकार उनकी आयु ६५ वर्ष की मानते हैं । उनके अनुसार आर्य र्क्षित का जन्म वी० नि० ५०२ (वि० स० ३२ ) मे और भद्रगुप्त से उनका मिलन वी० नि० ५३३ (वि० स० ६३ ) मे हुआ था ।
आधार-स्थल
१ सूर्याश्वयोरिव यमो तयो पुत्रो बभूवतु । आर्यरक्षित इत्याद्यो द्वितीय फल्गुरक्षित ॥ ६ ॥
२ धिक् । ममाधीतशास्त्रीय वह्नप्यवकरप्रभम येन मे जननी नैव परितोषमवापिता ॥ १६ ॥
३ तावचिते३ – नामपि चैव सुन्दर, जइ कोइ अभावेइ अामि, मायावि तोमिया मवई, ताहे भणइ कहि ते दिट्ठवायजाणतगा ? सा मणइ - अम्ह उच्छुधरे तालिपुत्ता नाम आयरिया |
४ नवाह दृष्टिवादस्य पूर्वाण्यध्ययनानि वा । दर्शम खण्डमध्येध्ये दध्यो यानिति सोममू ॥ ५४ ॥
( प्रभा० चरित, पनाक E ),
५ श्रीमत्तोमलिपुत्राणा मिलित परया मुदा । पूणा नवके सा सङ्गृहीती गुणोदधि ॥ ११७ ॥
(प्रभा० चरित, पनाक है)
(आवश्यक मलय वृत्ति, पत्ताक ३१४)
(परि० पव०,
मर्ग ० १३)