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१३४ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
सहयोग मिला। आचार्य नागार्जुन ने आर्य पादलिप्त का अपने पर महान् उपकार माना है। उनकी पावन स्मृति मे आर्य नागार्जुन की प्रेरणा से शत्रुञ्जय पर्वत की तलहटी मे बसे एक नगर का नाम पालितायण हुआ था।
मानखेटपुर के राजा कृष्ण एव ओकार पुर के राजा भीम भी आचार्य पादलिप्त की प्रतिभा पर मुग्ध थे।
आर्य पादलिप्त महान् साहित्यकार थे। उन्होने 'प्रश्न प्रकाश','निर्वाण कलिका' आदि उत्तम ग्रन्थो की रचना की। 'तरग लोला' नामक एक चम्पू काव्य का निर्माण कर राजा शातवाहन की सभा मे उसका व्याख्यान किया। काव्य सुनकर राजा तुष्ट हुआ। कवीन्द्र के नाम से आर्य पादलिप्त की ख्याति हुई । कवियो ने भी मुक्त कठ से प्रशसा की। राजसम्मानिता-गुणज्ञा गणिका ने उनकी स्तवना मे एक शब्द भी न कहा। राजा शातवाहन पादलिप्त से वोले-"तक्रियता येन स्तुते।' आर्य ऐसा उपक्रम करे जिससे यह गणिका भी आपके इस काव्य की स्तुति मे हमारे साथ हो। प्रभावक चरित्र के अनुसार गणिका के स्थान पर पाचाल कवि का उल्लेख है। आचार्य पादलिप्त के काव्य श्रवण से सब सन्तुष्ट थे पर असूयाकात पाचाल कवि काव्य मे दोपो को आरोपित कर रहा था।
आचार्य पादलिप्त कवि ही नही थे, चामत्कारिक विद्याओ पर भी उनका अधिकार था। वे उपाश्रय मे गए एव पवन-जय सामर्थ्य से श्वास की गति का अवरोध कर पूर्ण निश्चेष्ट ही गए। उनकी कपट पूर्ण मृत्यु भी यथार्थ मृत्यु की प्रतीनि करा रही थी। सर्वत्र हाहाकार फूट पड़ा। आर्य पादलिप्त का शवयान नगर के प्रमुख मार्गो से ले जाया जा रहा था । वाद्यो की ध्वनि उठ रही थी । शवयाना पाचाल कवि के द्वार नक पहची। आचार्य पादलिप्त को शवयान मे देखते ही शोक-पूरित कवि पाचाल रो पडा और बोला
आकर सर्वशास्त्राणा रत्नानामिव सागर । गुणर्न परितुप्यामो यस्य मत्सरिणो वयम् ॥३४०।।
_ (प्रभा० च० पृ० ३६) -रत्नाकर की भाति समग्र शास्त्रो के आकर महासिद्धिपात्र आचार्य पादलिप्न थे । इविश मैं उनके गुणो से भी परितुष्ट नही हगा। मेरे जैसे असूयी व्यक्ति को कभी मोक्ष की प्राप्ति नही होगी। आचार्य पादलिप्त उच्च कोटि के कवि थे।
मीस कहवि न फुट्ट जमस्स पालित्तय हरतस्स । जस्स मुहनिज्झराओ तरगलोला नई बूढा ।।३४१॥
(प्रभा० चरित, पृ० ३६) -जिनके मुख निर्झर से 'तरग लोला' नदी प्रवाहित हुई उन पादलिप्त के प्राणो को हरण करने वाले यमराज का सिर फूटकर दो टूक क्यो न हो गया।