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पारस-पुरुप आचार्य पादलिप्त १३३
पुत्र नागार्जुन नाना प्रकार को औषधियो का परिशाता था। स्वर्ण बनाने की रसायन विद्या भी वह जानता था।
एक दिन प्रसिद्ध विद्वान आचार्य पादलिप्त के आगगन की बात उसने सुनी। स्वागत मे शिष्य के द्वारा स्वर्ण निर्मारक रसायन से भरा पान उनके पास भेजा। आचार्य पादलिप्त ने उसे पत्थर पर पटककर तोड डाला एव काच पान को स्वप्रस्रवण से भरकर उसी शिष्य के साथ लौटा दिया । कटोरे की ढक्कन उठाकर विद्वान् नागार्जुन ने उमे सूघा । भारी दुर्गन्ध उममे फूट रही थी। आचार्य पादलिन के इम घवहार मे नागार्जुन कुपित हुआ एव पात्र को शिलाखण्ड पर पटका। प्रत्रवण का स्पर्श होते ही अग्नि प्रज्वलित हुई एव शिलाखण्ड स्वर्ण वनकर चमक उठा। आचार्य पादलिप्त के प्रस्रवण स्पर्श से भी स्वणसिदि देख, अपनी रसायन विद्या पर गर्व करने वाले रसायनवेत्ता विद्वान् नागार्जुन का गर्व मिट्टी में मिल गया।
वह बाचार्य पादलिप्त को सन्निधि में रहने लगा। गगन-गामिनी विद्या प्राप्त करने का अभिनापी विद्वान् नागार्जुन प्रशान्तभाव से उनकी देह-सुश्रूपा एव चाण-प्रक्षालन का कार्य करता । आर्य पादलिप्त परोपर लेप लगाकर तीर्थ भूमिक गिरिगो पर प्रतिदिन गगन-मार्ग से जाते और आते थे। उनके आवागमन का यह कार्य एक मुहूर्त मे नम्पन्न हो जाता था। विद्याचरण लब्धि के धारक साधको की-मी क्षमता आर्य पादलिप्त में थी। आर्य नागार्जुन उनके पाद-प्रक्षालित उदक के वर्ण-गन्ध-स्वाद आदि को नमझकर, सूधकर, चवकर १०७ द्रव्यो का ज्ञाता हो गया। आचार्य पादलिप्त की माति विद्वान् नागार्जुन भी पैगे पर लेप लगाकर आकाश में उडता पर पूर्ण ज्ञान के अभाव मे वह ताम्रचूड पक्षी की तरह थोडी ऊचाई पर जाकर नीचे गिर पडता एव घायल हो जाता था। पैरो के शव को देखकर आचार्य पादलिप्त विद्वान नागार्जन की असफलता का कारण समझ गए और उनमे बोले, "कुशल मनीपी । तुम्हारी इस अपूर्णता का कारण गुरुगम्य ज्ञान का अभाव है।" ज्ञान-प्राप्ति की दिशा मे अह का माथ नहीं निभता।" आचार्य पादलिप्त मे दिशा-दर्शन पाकर विद्वान् नागार्जुन उनके चरणो में गिरा 'एव गगनगामिनी विद्या की माग की। आचार्य पादलिप्त ने पुन कहा-"मेरे से प्रशिक्षण पाने हेतु शिष्य बनना आवश्यक है।' विद्वान् नागार्जुन ने उनका मिप्यत्व स्वीकार कर लिया। उदारवत्तिक आचार्य पादलिप्त ने पादलेप विद्या का ममग्रता से वोध देते हुए कहा-"शिप्य | तुम्हे एक सौ सात औपधियो का ज्ञान उपलब्ध है । इनके साथ काजीजल-मिश्रित साठी तण्डुल का लेप करो।"तुम निर्वाध गति से गगन यात्रा कर सकोगे।" गुरु के मार्ग-दर्शन से नागार्जुन को अपने कार्य में पूर्ण सफलता प्राप्त हुई।
आचार्य पादलिप्त को धर्म प्रचार मे विद्वान् शिष्य नागार्जुन का अत्यधिक