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________________ पारस-पुरुप आचार्य पादलिप्त १३५ कवि पाचाल के मुख से अपनी प्रशसा सुनकर आचार्य पादलिप्त उठ बैठे और वोले-"मैं कवि जी के नत्य वचन के प्रयोग से जीवित हो गया।" आचार्य पादलिप्त मे प्राण-शक्ति का संचार देश सभीके मुख कमल-दल की भाति मुस्करा उठे। प्रवन्धकोप के अनुसार इस विस्मयकारक घटना को देखकर गणिका बोली"मुने । सारमरकर भी हमारे मुख से न्तुति पाठ करवाते हैं।" पादनिम ने कहा, "पञ्चम वेद का मगान मृत्यु के बाद ही होता है।" बाचार्य पादलिप्त के उत्तर से गोकरित वातावरण गिलसिला उठा। ____ आचार्य पादनिप्त अपने युग के प्रकृप्ट विज्ञान थे। वह युग प्राकात का उत्कर्ष काल या । 'तरगवती कपा' आनार्य पादलिप्त पी सग्ग प्रात रनना है। यह प्राकृत कथामाहित्य या आदिगोत भी है। आचार्य पादनिप्त ने एक दिन में राजा ज्ञान वाहन विद् भोग का का निर्माण कर राजा मानपाहन की ममा मे उमका वाचन किया । भाचार्य उद्योतन की कुवल्यमाना गे पादलिप्त एव तरगवती Tथा पा उल्लेख है। नेमिनन्द द्वारा निर्मिन १६८२ गायागो का 'तरग लोला' नामक ग्रन्य भाचार्य पानिप्त की कथा का ही मक्षिप्त म्प माना गया है। राजा गावाहन रचय भी दिया। उगकी नि 'गाथा सप्तति' अनेक कवियो की रचना मकान है। उनमे पानिन का काव्य नोक भी है। याचाय पादग्निप्न के जीवन के मुन्य प्रमगचात्यकाल में ही श्रमण दीक्षा ग्रहण, धमप्रचारार्थ मयुरा, पाटलिपुत्र, नाट, मौराष्ट्र गवजय आदि अनेर स्थानो पर भ्रमण, मुरण्ट आदि कई राजाओं को प्रतियोध देकर उन्हे गुलम चोधि बनाने के सफन प्रयत्न और नरगवती जी उच्चकोटि के प्राकृत काव्य पा निर्माण है। प्रभावी आचार्य पादविप्न मन्जय पर्वत पर ३२ दिवमीय अनशन के माथ स्वगगामी हुए।"प्रोफेसर लॉयमन ने आचार्य पादलिप्त का समय ई० म० दूमरीतीसरी शताब्दी माना है। इस आधार पर भाचार्य पादलिप्त वी०नि० की ७वी (वि० २) शताब्दी के विद्वान् प्रतीत होते है। आधार-स्थल १ श्री कालिकायायमन्ताने विद्याधरगच्छे अतसमुद्रपारंग श्री आचार्य नागहस्ति गुरणामनेकमपिता प्रवेच्छया पादप्रमालाजल पिव । (पुराता प्रवन्ध संग्रह, पु०६२, पक्ति १५)
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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