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सद्गुण - रत्न- महोदधि आचार्य आर्य महागिरि ६५
कल्पसूत्र स्थविरावली मे आर्य महागिरि के विशाल शिष्य परिवार मे से आठ प्रमुख शिष्यो का उत्लेख हुआ है । उनके नाम इस प्रकार हैं " ( १ ) उत्तर, (२) वलिस्मह, (३) धनादय, (४) श्री भाढ्य, (५) कौण्डिन्य, (६) नाग, (७) नागमित्र, (८) रोहगुप्त । इन गिप्यो मे उत्तर और वलिस्सह प्रभावक शिष्य थे । उनमे चार शाखाए निकली । (१) कोशम्बिका ( २ ) शुक्तिमतिका, (३) कोटावानी और (४) चन्द्रनागरी ।
स्थानागमूत मे नौ गणो का उल्लेख है ।" उनमे उत्तर वलिस्सह गण की स्थापना उत्तर बलिस्मह के नाम पर है । आयं महागिरि के आठवे शिष्य रोहगुप्त राणिक मत प्रकट हुआ ।" पडुलूक गेहगुप्त का निह्नव परम्परा में छठा क्रम है |
तेजोद्दीप्न भारा आचार्य स्थूलभद्र को भाति मेधासम्पन्न आचार्य महागिरि भी दीर्घजीवी थे । तीन वर्ष तक वे गृहस्थ में रहे। सामान्य मुनि-पर्याय का उनका काल ४० वर्ष का एव युगप्रधान आचार्य पद का काल ३० वर्ष का था ।"
उन्होने युग का एक पूरा शतक अपनी आखो से देखा । मालव प्रदेश के गजेन्द्रपुर मे वे वी० नि० २४५ (वि० पू० २२५ ) मे स्वर्गगामी बने ।
१ तो हि यक्षायंया बाल्यादपि मात्रेव पालिती 1 स्यार्योपपदी जाती महागिरिसुहस्तिनी ||३७|
आधार-स्थल
२ शान्तो दान्ती लब्धिमन्तावधीता-वायुष्मन्तो वाग्मिनो दृष्टभक्ती । आचार्यत्वे न्यस्यती स्थूलभद्र काल कृत्वा देवभूय प्र
३ थूलभद्धसामिणा अज्जसुहत्थिस्स नियमो गणो अज्जमहागिरी अज्ज सुहत्यिस्स पीतिवसेण "
४ कालक्रमेण
गुरुगच्छ पुरा चिरकालेको
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भगवाञ्जगद्वन्धुमहागिरि ।
शिष्या निष्पादयामास वाचनाभिरनेकश